साभार- दोपहर का सामना 07 06 2019
रहमतों और बरकतों का महीना रमज़ान पिछले दिनों ख़त्म हुआ। साथ ही मुस्लिम समाज का सबसे बड़ा पर्व ईद-उल-फ़ित्र भी धूम-धाम से मनाया गया। सदक़ा, ज़कात, फ़ितरा जैसे अनेक रूपों में मुस्लिम समाज ने जमकर अपनी-अपनी हैसियत भर दान-दक्षिणा के कर्तव्य का भी निर्वहन किया। दरअसल रमज़ान और ईद जैसे पर्व मुस्लिम समाज को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करने का शक्तिशाली माध्यम हैं। हालांकि राजनीतिज्ञों और धनपशुओं ने अब इसे दिखावे और आडंबर का आयोजन बनाकर मुस्लिम समाज को शर्मिंदा कर दिया है। रात भर मुस्लिम मोहल्लों के रतजगे इबादत के लिए कम खाने-पीने के शौक़ीनों के लिए किसी फ़ूड फेस्टिवल का आयोजन ज़्यादा लगते हैं। हालांकि यह भी एक तरह से स्वीकार्य ही हैं कि इफ्तार बाद अगर अल्लाह ने खाने-पीने की मुमानियत हटा दी है तो क्यों न इबादत के साथ-साथ लज़ीज़ पकवानों का आनंद लिया जाए। आख़िर एक ही महीने की तो बात है। इसी महीने रात भर जागने वाले कई धर्मभीरु मुसलमान अनेक फ़क़ीरों, राहगीरों और सफ़र में रहने वालों को खुलकर खिलाते-पिलाते हैं जिसका मक़सद सवाब कमाना होता है।
इस साल रमज़ान में इफ़्तार के ज़्यादातर आयोजन पारंपरिक मुस्लिम महफ़िलों के दायरे में ही सीमित रहे। राजनीति के मैदान में इस साल इफ़्तार का मामला फीका ही रहा। मुंबई में कांग्रेस और एनसीपी की परंपरागत इफ़्तार पार्टी हुई भी लेकिन ज़्यादा चर्चा में नहीं रही क्योंकि आम मुसलमान इन पार्टियों को अब ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेता। इन इफ़्तार पार्टियों में प्रायोजित भीड़ होती है, भव्यता होती है, पकवानों की भरमार होती है, बस रोजा-इफ़्तार की रूह ग़ायब होती है। मुंबई में पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री की इफ़्तार पार्टी चर्चा के केंद्र में रही है। उसकी एक इफ़्तार पार्टी में दो मशहूर फ़िल्मी सितारों ने आपसी गिले-शिकवे भूलकर एक दूसरे को गले लगाया था। कभी युवा कांग्रेस का पदाधिकारी रहा यह नेता आम लोगों के बीच इफ़्तार पार्टियों का आयोजन करता था। नगरसेवक, विधायक और मंत्री बनने के सफ़र में भी उसने अपनी इस ख़ासियत को बरक़रार रखा था। लेकिन फिर उस पर धन, सत्ता और फ़िल्मी सितारों की संगत का ऐसा रंग चढ़ा कि उसकी इफ़्तार पार्टियां गली-मोहल्लों और जामतख़ानों से निकलकर फ़ाइव स्टार होटल की रौनक़ बनने लगीं। आम रोज़ेदारों के बजाय फ़िल्मी सितारों और बड़े नेताओं का जमावड़ा लगने लगा। नौकरशाहों और अधिकारियों को बुलाकर शक्तिप्रदर्शन किया जाने लगा। अब आम मुसलमान इस फ़ाइव स्टार रोजा इफ़्तार पार्टी के लिए 'अनफ़िट' क़रार पाया। इस वर्ष तो इस विवादित इफ़्तार पार्टी में फूहड़ता अपने चरम पर रही। अर्धनग्न सिनेतारिकाओं के साथ इफ़्तार पार्टी में ली गई इस नेता की तस्वीरें ख़ूब वायरल हुईं। यह कैसा रोज़ा खोला जा रहा है? यह कैसी इफ़्तार पार्टी है? यह कौन सा सबक़ है जो इस्लाम के पवित्र महीने रमज़ान में मुसलमानों के साथ बिरादरान-ए-वतन को दिया जा रहा है। रोज़ा तो उसी का खुलवाया जाता है, जिसने पूरे दिन रोज़ा रखा हो। जब फूहड़ता का प्रदर्शन करती इन अर्धनग्न हसीनाओं ने रोज़ा ही नहीं रखा तो उनको इफ़्तार पार्टी में बुला कर रोज़ा खुलवाना कहाँ तक जायज़ है। उन फ़िल्मी सितारों का क्या जो अपने फ़िल्मी एटीट्यूड के साथ इस इफ़्तार पार्टी में शामिल हुए। इसे इफ़्तार पार्टी कहना रोज़ेदारों के साथ मज़ाक़ न कहा जाए तो क्या कहा जाए। यह 'फ़ूड फेस्टिवल' और 'सिने कलाकारों का जमघट' तो हो सकता है लेकिन 'रोज़ा इफ़्तार पार्टी' तो कत्तई नहीं। यह अपनी फ़िल्मी सितारों में पहुँच, अपने धन-बल का प्रदर्शन, चर्चा में बने रहने का साधन, अपने आप को राजनीति में बनाए रखने का जुगाड़ तो हो सकता है लेकिन इफ़्तार नहीं। ऐसी इफ़्तार पार्टियों में सेलिब्रिटीज़ को महत्व देने और नाम के लिए चंद मुसलमानों को बुलाकर एक दिन लज़ीज़ व्यंजन खिलाने को क्यों न मौक़ापरस्ती समझा जाए? आख़िर ऐसी इफ़्तार पार्टियों से आम मुसलमानों, ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को क्या लाभ होता है? इस आडंबरयुक्त इफ़्तार पार्टी के जवाब में पिछले वर्ष की एक सराहनीय इफ़्तार पार्टी का उदहारण दिया जा सकता है। तब अयोध्या में सरयू नदी के तट पर मौजूद मंदिर सरयू कुंज ने व्यापक स्तर पर शांति और सह-अस्तित्व का संदेश फैलाने के लिए इफ़्तार की मेज़बानी की थी। यह मंदिर अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद स्थल से महज़ कुछ मीटर की दूरी पर मौजूद है। असल इफ़्तार पार्टी का यह अनुकरणीय नमूना है।
इस्लामी मान्यतानुसार रमज़ान के महीने में अल्लाह ने पैग़ंबर मोहम्मद साहब पर पवित्र क़ुरआन अवतरित की थी। इसलिए इसे ख़ुदा की दया और उदारता का महीना माना जाता है, त्याग और तपस्या वाला महीना माना जाता है। पर आज के दौर में स्वार्थी तत्वों ने रमज़ान में रोज़ा (व्रत/उपवास) रखने को धार्मिक कार्य के बजाय राजनीतिक प्रहसन बना दिया है। कहा जाता है कि राजनैतिक इफ़्तार पार्टी की यह रवायत पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के साथ शुरू हुई। कुछ लोग इसका श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी देते हैं। राजनैतिक इफ़्तार पार्टियां राजीव गांधी के जमाने में भी जारी रहीं। हालांकि ग़ैर-कांग्रेसी पार्टियों का धर्मनिरपेक्ष कुनबा इफ़्तार पार्टी को लेकर कांग्रेसियों के दावे को ग़लत बताता है। उनका दावा है कि 'रोज़ेदारों' की मेज़बानी करने की शुरुआत सबसे पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवंती नंदन बहुगुणा ने १९७३ से १९७५ के दौरान किसी वक़्त में की थी। बाद के दौर में वीपी सिंह और राजनारायण जैसे बड़े नेता भी टोपियां लगाकर इनमें शिरकत करते नज़र आए। इनकी देखा-देखी मुलायम सिंह यादव और लालू यादव जैसे क्षत्रप भी भव्य इफ़्तार पार्टियां देने लगे।
रमज़ान के पाक महीने में दुनिया भर के मुसलमान रोज़ा रखते हैं और शाम के वक़्त रोज़ा खोलते हुए हलाल की कमाई से इफ़्तार करते हैं। लेकिन राजनैतिक इफ़्तार पार्टियों को लेकर इस बात की तस्दीक़ आज तक कोई न कर सका कि क्या नेता मंडली सवाब की नीयत से वाक़ई हलाल की कमाई ख़र्च करती है या यह केवल दिखावा मात्र है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिम धर्मगुरु राजनीतिक हलक़ों की इफ़्तार पार्टियों को ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। कई मुस्लिम धर्मगुरुओं का इस तरह के आयोजनों से मोहभंग हो चुका है। अनेक मुस्लिम धर्मगुरु और बुद्धिजीवी इसे महज़ धन की नुमाइश करने वाला राजनीतिक तमाशा क़रार देने से भी परहेज़ नहीं करते हैं। यहां तक कि कई मुस्लिम संगठनों, मुस्लिम उलेमा, विभिन्न मस्जिदों के इमामों और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों ने राजनैतिक इफ़्तार पार्टियों का 'बहिष्कार' करने का आह्वान भी किया था। इन सभी ने मुसलमानों से राजनीतिक इफ़्तार पार्टियों में नहीं जाने के फ़तवे भी जारी किए। उनका मानना है कि रमज़ान का यह पवित्र महीना राजनीतिक गतिविधियों के लिए नहीं, बल्कि इबादत, दान-दक्षिणा और प्रायश्चित के लिए होता है।
अनेक समाजसेवी संगठन विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं और समाजसेवियों को बुलाकर इफ़्तार पार्टी का आयोजन करते हैं। सांप्रदायिक एकता, धार्मिक भाईचारा और आपसी मोहब्बत ऐसी इफ़्तार पार्टियों की रूह होती हैं। उस आध्यात्मिकता के भाव और रूहानियत से राजनैतिक पार्टियां महरूम होती हैं। पवित्र क़ुरआन में रमज़ान को लेकर ईश्वर का फ़रमान है, 'और रमज़ान वह महीना है जिसमें पवित्र क़ुरआन तुम्हारे लिए पृथ्वी पर आया, यह 'मानवता' के पथ प्रदर्शक के तौर पर आया, और यह पथ प्रदर्शन और मुक्ति का स्पष्ट चिन्ह है..'' (अल-क़ुरआन 2:185) क्या सियासी इफ़्तार पार्टियों में कहीं से कहीं तक आयोजकों की नीयत क़ुरआन के इस संदेश की तर्जुमानी करती है? सवाल का जवाब मुसलमानों को पता है लेकिन बड़े नेताओं और ताक़तवर धन पशुओं के ख़िलाफ़ बोलने से मुसलमान न जाने क्यों कतराता है। इफ़्तार पार्टी का आयोजन व्यक्ति या संस्था की नीयत पर निर्भर करता है। अगर विभिन्न समुदाय के लोगों के बीच आपसी सद्भाव को बढ़ाने की नीयत से कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो इसमे कोई हर्ज नहीं। इतना तो तय है कि नेताओं द्वारा राजनीतिक उद्देश्य से इफ़्तार पार्टी आयोजित की जाती है न कि हिन्दू-मुस्लिम भावनात्मक एकता के लिए। इसे सिर्फ़ एक ‘राजनीतिक नौटंकी’ के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। विभिन्न धर्मों के बीच ग़लतफ़हमियों को मिटाने, सामाजिक सौहार्द क़ायम रखने, मआशरे में सद्भाव क़ायम रखने, देश की धर्मनिरपेक्ष विरासत को आत्मसात करने और सही मायनों में इन भावनाओं को आगे बढ़ाने का संदेश देने वाली इफ़्तार पार्टियों को ज़रूर प्रोत्साहन मिलना चाहिए लेकिन अपने सियासी फ़ायदे और दिखावे वाली इफ़्तार पार्टियों को हतोत्साहित करना मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है। उम्मीद की जानी चाहिए की आगामी वर्षों में मुस्लिम समाज इस दिशा में ज़रूर कठोर निर्णय लेने का मन बनाएगा।