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ग़ैर-इस्लामी है आतंकवाद / सैयद सलमान
Friday, April 26, 2019 9:56:21 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 26 04 2019

ईसाई भाइयों के पवित्र पर्व ईस्टर पर आतंकवाद का भयानक चेहरा एक बार फिर से देखने को मिला। लेकिन इस बार श्रीलंका में, वह भी बदले की कार्रवाई का बहाना बताकर। ईस्टर के मौक़े पर सिलसिलेवार ८ बम धमाकों ने द्वीपीय देश श्रीलंका को हिलाकर रख दिया। इस घातक हमले में ३०० से ज़्यादा लोगों की मौत और लगभग ५०० लोगों के घायल होने की ख़बर है। श्रीलंका के इतिहास में अल्पसंख्यक मुस्लिम बनाम-अल्पसंख्यक ईसाई के बहाने हुई सबसे बड़ी आतंकवादी घटना के पीछे नेशनल तौहीद जमात नाम के स्थानीय संगठन का नाम सामने आया। हालाँकि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी ली है। ईस्टर का दिन आतंकियों ने इसीलिए चुना, ताकि वह अधिक से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार सकें। इन आतंकी हमलों के साथ ही लिट्टे के साथ ख़ूनी संघर्ष के ख़ात्मे के लगभग १० साल बाद श्रीलंका में एक बार फिर से शांति भंग हुई है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इन हमलों को लेकर आगाह किया था, लेकिन कोई सुरक्षात्मक क़दम नहीं उठाए गए और नतीजा सामने है। चूँकि हमारा देश भी गाहे-बगाहे आतंकी कार्रवाई का भुक्तभोगी रहा है, इसलिए श्रीलंका के दर्द को समझ सकता है।

हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका लंबे अरसे से सिंहली बौद्धों और अल्पसंख्यक हिंदू, मुस्लिम और ईसाइयों के बीच संघर्ष का गवाह रहा है। श्रीलंका की शांति बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजीव गाँधी की हत्या भी आतंकी संगठन लिट्टे ने ही की थी। लेकिन नए सिरे से श्रीलंका में हुई इस आतंकी कार्रवाई में मुस्लिम संगठन का नाम आना चिंताजनक है। हमले की शुरुआती जांच के बाद श्रीलंका के राजनैतिक गलियारों में यह चर्चा है कि आतंकियों ने न्यूज़ीलैंड की दो मस्जिदों में १५ मार्च को हुए हमले का बदला लेने के लिए धमाकों को अंजाम दिया। बता दें कि, एक ऑस्ट्रेलियाई बंदूकधारी ने न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च स्थित दो मस्जिदों पर हमला किया था। इस हमले में ५० से ज़्यादा लोग मारे गए थे। हालांकि न्यूज़ीलैंड का कहना है कि दोनों घटनाओं में संबंध को लेकर कोई ख़ुफ़िया जानकारी नहीं मिली है। इस घटना से पहले की अगर बात करें तो श्रीलंका में कट्टरपंथी बौद्ध समूह मुस्लिम समुदाय पर लोगों के जबरन धर्मांतरण के आरोप लगाते रहे हैं। यानि एक तरह से यह टकराव पुराना है। और इस टकराव की अगली कड़ी इतनी भयावह होगी किसी ने शायद ही कभी सोचा हो। विश्व भर में आतंकवादी कार्रवाई कर मुस्लिम समाज की किरकिरी करवाने के बाद श्रीलंका में आतंकी कार्रवाई करवाकर आईएसआईएस ने मुसलमानों का सर फिर शर्म से झुका दिया है।

आतंकवादियों ने अपनी कार्रवाई को अगर न्यूज़ीलैंड की कार्रवाई से जोड़ा है तो क्या वह यह बताने कष्ट करेंगे कि क्या मुसलमानों के लिए बदला लेने का उनसे किसी ने मुआहिदा किया है? किसने हक़ दिया है उन्हें कि वे बेक़सूरों का क़त्ल करते घूमें, जबकि क़ुरआन कहता है कि, 'किसी एक बेक़सूर का क़त्ल पूरी इंसानियत का क़त्ल है।' यहाँ तो ३०० से ज़्यादा लाशें बिछा दी गईं। न्यूज़ीलैंड में किसी ईसाई ने मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे लोगों पर गोलिया बरसाकर अगर नमाज़ियों को मारा था, तो क्या इन आतंकवादियों को यह सर्टिफ़िकेट मिल गया कि वे दुनिया मे कहीं भी अपनी नकली ताक़त का मुज़ाहरा करते हुए बेक़सूर ईसाईयों का क़त्ल करते रहें? बेक़सूर नमाज़ियों का क़त्ल अगर न्यूज़ीलैंड के क़ातिल के लिए ग़लत था तो, बेकसूर ईसाईयों की हत्या इन आतंकवादियों के लिए हराम क्यों न घोषित कर दी जाए? आख़िर यह आतंकवादी क़ुरआन की शिक्षा के ख़िलाफ़ जाकर हरामकारी ही तो कर रहे हैं।

इस आतंकी कार्रवाई के ख़िलाफ़ मुस्लिम समाज को एकजुट होकर आवाज़ उठाने की ज़रुरत है, वरना आतंकवादियों को हौसला मिलता है। इसकी शुरुआत हो भी चुकी है, बस पूरे देश के मुसलमानों को इसमें शामिल होना है। हमले के पीड़ितों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए विभिन्न मुस्लिम और ईसाई धर्म गुरु सामने आए हैं। इन विस्फ़ोटों में लिप्त लोगों को इन धर्मगुरुओं ने ‘अल्लाह का दुश्मन’ और ज़मीन पर ‘शैतानी ताक़तों का प्रतीक’ बताया है। इन धर्मगुरुओं ने साझा बयान जारी कर कहा है कि, ''जो लोग इन विस्फ़ोटों में लिप्त हैं वे मानव सभ्यता और ख़ुदा के दुश्मन हैं और धरती पर शैतानी ताक़तों के प्रतीक हैं।" इन धर्मगुरुओं ने एक बात स्पष्ट की है और उनकी इस बात से भी इत्तेफ़ाक़ रखना होगा कि, किसी आतंकवादी या आतंकवादी संगठन को किसी मज़हब से जोड़ना अपनी आस्था का अपमान करना है। पूरे मुस्लिम समाज को इन धर्मगुरुओं के समर्थन में खुलकर सामने आना होगा और यह कहना होगा कि वह इस आतंकी कार्रवाई की न सिर्फ निंदा करते हैं, बल्कि वह ईसाई समुदाय के साथ खड़े हैं। न्यूज़ीलैंड में हुई आतंकी घटना के बाद जब वहां की प्रधानमंत्री जेसिंडा एर्डर्न ने हिजाब पहनकर और मुसलमानों के ग़म में शरीक होकर उनके प्रति सहयोग, रहमदिली और संवेदनाएं दिखाई थीं, तो पूरा विश्व उनका क़ायल हो गया था। आज वही स्थिति ईसाई भाइयों के लिए है, इसलिए मुसलमानों को न्यूज़ीलैंड के नागरिकों की तरह ईसाईयों के समर्थन में उतरने की ज़रुरत है। अगर मुसलमानों को न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री और न्यूज़ीलैंड के नागरिकों का प्रतीकात्मक प्रेम अच्छा लगा था तो क्या यह ज़रूरी नहीं कि मुसलमान भी उसी तरह सड़कों पर आकर, चर्चों में पहुंचकर ईसाई समुदाय को गले लगाकर अपना प्रेम प्रदर्शित करें? जब ख़ुद पर बीते तब आप पीड़ित और जब दूसरे पर कुछ ग़लत हो तो आप मूक दर्शक बनकर ख़ामोश रहें यह कैसा न्याय है। यह तो दोग़लापन हुआ। और माफ़ कीजियेगा, सही इस्लाम का अनुयायी न तो आतंकी हो सकता है न ही दोग़ला। यह दोग़लापन और आतंकी सोच कठमुल्लेपन की वर्षों से जारी हिमायत और उनकी सोच को सही मानने की ग़लती करने का नतीजा है, जिस से मुसलमानों को बाहर आना होगा।

मुस्लिम समाज के लोगों की भावना कहती है कि, ज़ालिम और ज़ुल्म सहने वाले की पहचान धर्म के आधार पर नहीं हो सकती है। अगर इस सत्य पर यक़ीन है, तो इस बात के प्रमाण के लिए आतंकी गतिविधियों की विश्वस्तर पर निंदा करनी होगी और पीड़ित पक्ष के साथ खड़े रहना होगा। कोई भी आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता है। आतंकवाद बुरा ही होता है, वह भी बेहद बुरा, घृणा की हद तक बुरा। आतंकवाद न सिर्फ़ दरिंदगी है बल्कि ग़ैर-इस्लामी भी है। इस्लाम तो क्या कोई कोई भी मज़हब इसकी इजाज़त नहीं देता है। लेकिन अधकचरे ज्ञान और कठमुल्ले उलेमा की तक़रीरों और उनके लेख से प्रभावित होकर आतंक की राह पर चल पड़े किसी समाज को आख़िर कैसे सही रास्ते पर लाया जाए। साथ लाने के लिए उस सोच को मारना होगा कि, फ़लां धर्म सही और फ़लां धर्म गलत। फ़लां धर्म के के मानने वाले सही हैं और बाक़ी सब ग़लत। दुर्भाग्य से आतंकवादियों को यही लगता है कि उनका धर्म ही सही है, बाक़ी सब ग़लत है और उन्हें ख़त्म कर दिया जाना चाहिए। आतंकवादी विचारधारा की यही सोच आख़िर में मुस्लिम समाज के लिए गले का फाँस बन जाती है।

एक बात पर ग़ौर करें कि श्रीलंका में हुआ हमला त्यौहार पर हुआ है। यानि स्पष्ट है कि धार्मिक त्योहारों के मौक़े पर धार्मिक स्थलों पर हमले करवाकर विभिन्न क़ौमों के बीच दुश्मनी पैदा किये जाने की यह कोशिश है। क्या इस से यह साबित नहीं होता कि यह एक ऐसी साज़िश है जिस से अफ़रातफ़री का माहौल रहे, आतंकवादियों का भय बना रहे और वे चर्चा में रहकर आतंकवादी समूहों को मदद करने वाली शक्तियों से हथियार और धन लेकर अपने धर्म की ब्रांडिंग भी करें और ठेके लेकर मौत का कारोबार भी करें। उनकी इस डील से भले ही आम मुसलमान का नुक़सान होता है तो हुआ करे। ऐसी शक्तियां पहचान में आ चुकी हैं। ऐसी शक्तियों पर अंकुश लगाना ज़रूरी है। मुस्लिम समाज को अब इस मामले में पहल करने की ज़रूरत है। मुसलमानों को चाहिए कि वह एक उच्च स्तरीय अंतरजातीय नागरिक प्रतिनिधिमंडल बनाएं और श्रीलंका जाएं। वहां जाकर वह पीड़ित परिवारों से मिलकर उनके साथ हमदर्दी पेश करें और सद्भावना का संदेश दें। बिलकुल उसी तरह जैसा न्यूज़ीलैंड के नागरिकों ने मुसलमानों के साथ किया था। मुसलमानों का यह क़दम जातीय रिश्तों के बीच फैलाई जा रही कड़वाहट का तोड़ और सामाजिक समरसता का सबसे मज़बूत जोड़ भी साबित होगा।