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पाकिस्तान में मुसलमान ही मुसलमान को मार रहा है / सैयद सलमान
Friday, March 29, 2019 10:07:09 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 29 03 2019

पाकिस्तान में आतंकवाद, ऑनर किलिंग, ईशनिंदा पर सख़्ती, जबरन धर्म परिवर्तन जैसे कई मामले हैं जो वहां के लिए कोई नई बात नहीं है। वहां लगातार अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों को तोड़ा जाता है। आमतौर पर ऐसा करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि पाकिस्तान सरकार का रुख़ इस मामले में ठंडा होता है। आज़ादी से लेकर अब तक पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन के कई मामले सामने आए हैं। लेकिन एक ताज़ा मामला बताता है कि पाकिस्तान में सरकारें भले बदल जाएं, भले ही प्रधानमंत्री इमरान खान 'नए पाकिस्तान' का दावा करते फिरें लेकिन वहां के लोग बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। बात होली के दिन की है जब पाकिस्तान के सिंध के घोटकी इलाके से दो नाबालिग़ हिंदू बहनों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन कर इस्लामिक रिवाज के अनुसार जबरन शादी करवा दी गई। ख़बरों के मुताबिक दो बहनों को कुछ मुस्लिम युवा उस समय ज़बरदस्ती उठाकर ले गए जब हिंदू समाज होली मना रहा था। पहले तो पुलिस मामला ही दर्ज नहीं कर रही थी लेकिन भारी दबाव और विरोध प्रदर्शन के बाद एफ़आईआर दर्ज हो सकी।

पाकिस्तान में हिंदुओं के ख़िलाफ़ अत्याचार की ये कोई पहली घटना नहीं है। हालांकि सरकार और उसके सिस्टम के दबाव के कारण बहुत कम घटनाएं सुर्ख़ियों का रूप ले पाती हैं, क्योंकि ऐसी ख़बरों को दबा दिया जाता है। पाकिस्तान में अक्सर हिंदू, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक औरतों का बलात्कार और शोषण किया जाता है और उसके बाद उनकी शादी ज़बरदस्ती बलात्कारियों से कर दी जाती है। भले ही वे पहले से शादीशुदा हों तो भी उनकी दूसरी शादी कर दी जाती है। सरकारी पुश्तपनाही में शादी के बाद ज़बरदस्ती कराए गए धर्म परिवर्तन का शिकार हुई पीड़ित महिलाएं किसी अदालत में अपनी पहले से हुई शादी को साबित भी नहीं कर पाती हैं। शायद इसी दबाव और अत्याचार का नतीजा है कि पाकिस्तान से हर साल हज़ारों हिंदू परिवार भागकर भारत में ना केवल शरण लेते हैं बल्कि भारतीय नागरिकता की गुहार भी लगाते हैं। सरकार ने पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए शरणार्थी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता भी दी है। भारत में एक अनुमान के तौर पर दो लाख से ज्यादा हिंदू शरणार्थी देश के विभिन्न हिस्सों में शरण लिए हुए हैं।

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी कमीशन की वर्ष २०१२ की सालाना रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर गंभीर नहीं है। रिपोर्ट में दुनियाभर के देशों का ज़िक्र है लेकिन पाकिस्तान को लेकर ख़ासतौर पर चिंता ज़ाहिर की गई है। पाकिस्तान में जनरल ज़ियाउल हक़ ने १९८० के दशक में ईश निंदा क़ानून को कड़ा कर दिया था। इस क़ानून में प्रावधान है कि अगर देश के किसी नागरिक को ईश यानि अल्लाह या पैग़ंबर की निंदा करते पाया गया तो उसके ख़िलाफ़ ईशनिंदा क़ानून के तहत कार्रवाई होगी। आमतौर पर इस क़ानून की ज़द में अल्पसंख्यक समाज ही आता है। क़ानूनन ईश निंदा के दोषियों को फांसी या आजीवन कारावास जैसी कड़ी सजा का प्रावधान है। विश्व भर में चर्चित आसिया बीबी का मामला भी ईश निंदा से ही जुड़ा हुआ था जो पाकिस्तान के लिए शर्मनाक भी बना। ईसाई धर्म से ताल्लुक़ रखने वाली आसिया बीबी को एक मामूली सी बात में कहासुनी के बाद ईश निंदा के मामले में फंसा दिया गया था। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट द्वारा बाइज़्ज़त बरी किए जाने के बावजूद आसिया सार्वजनिक तौर पर भयवश बाहर नहीं निकलतीं क्योंकि उन्हें डर है कि ऐसा करने पर उनकी हत्या कर दी जाएगी। आसिया मामले में पाकिस्तान में लगातार हिंसक प्रदर्शन होते रहे हैं।

कहने को तो पाकिस्तान के जन्म के बाद उनके क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह ने १७ अगस्त १९४७ को अपने भाषण में अल्पसंख्यकों को यह दिलासा दिया था कि पाकिस्तान में रुके अल्पसंख्यक पाकिस्तान में भयमुक्त होकर रहें, उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। जिन्नाह ने कहा था, आप स्वतंत्र हैं, निडर होकर अपने धर्मस्थलों पर जाइए। आप चाहे किसी भी धर्म, जाति और समुदाय के हों, आप सभी पाकिस्तान राष्ट्र के नागरिक हैं। सभी के लिए यहां क़ानून और दर्जा एक सामान होगा। लेकिन, क्या पाकिस्तान में ऐसा कभी हो सका? पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के लिए अज़ाबघर बना दिया गया। इसके ठीक विपरीत हमारे देश में अल्पसंख्यकों को पूरी आज़ादी मिली, सम्मान मिला और समान अधिकार मिले। बाद के वर्षों में भले ही ध्रुवीकरण के खेल में मुसलमानों को राजनैतिक तौर पर नुक़सान हुआ हो लेकिन उसके बावजूद मुस्लिम समाज के साथ यहां के बिरादराने वतन हमेशा खड़े रहे। सांप्रदायिक दंगों ने मुसलमानों का नुक़सान तो किया लेकिन दंगाई मानसिकता को अधिकांश हिंदू भाइयों का समर्थन नहीं मिला और वे इस देश की गंगा-जमनी तहज़ीब की विरासत को संभालने में कामयाब रहे जो मुसलमानों के लिए गर्व की बात है। पाकिस्तान में तो मुसलमान ही मुसलमान को मार रहा है। वहां फ़िरक़ों की लड़ाई में शिया, सुन्नी, मुक़ल्लिद, ग़ैर-मुक़ल्लिद एक दूसरे की मस्जिदों में घुसकर नमाज़ियों को मार रहे हैं।

विश्वभर में हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का उदहारण दिया जाता है। वह केवल इसलिए कि भारतीय संस्कृति सबको सुखी और प्रसन्न रखना चाहती है। यह 'वसुधा' को ही 'कुटुंब' मानने में विश्वास रखती है। भारतीय संस्कृति का मुख्य उद्देश्य 'सर्वजन हिताय' और 'सर्वजन सुखाय' है। अपना-अपना मत प्रकट करने की या विचार परिवर्तन करने की हमारे देश में हमेशा आज़ादी रही है। शासन, प्रशासन या सरकार की तरफ़ से किसी भी समुदाय को कोई मत विशेष, कोई धर्म या पंथ विशेष मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाता। लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक उदारता के कारण हमारे देश में सर्वधर्म समभाव पाया जाता है। हमारा देश वर्गो, जातियों, संप्रदायों में विभाजित होने के बावजूद एक सांस्कृतिक सूत्र में बंधा हुआ है जिसे समझने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो शायद ही पाकिस्तान के पास हो। यहां का भौतिक और सामाजिक रूप, भाषा, रीति-रिवाज और धार्मिक भिन्नता के बावजूद कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एकता के सूत्र में बंधा है और इस विशेषता से पाकिस्तान महरूम है।

लेकिन मुसलमानों से एक शिकायत है। पाकिस्तान के जबरन धर्मपरिवर्तन पर अब तक किसी बड़े मुस्लिम राजनैतिक रहनुमा या धर्मगुरु का कोई कड़ा बयान नहीं आया जो पाकिस्तान को आइना दिखा सके। हिंदुस्तान में अख़लाक़ सहित अनेक मुसलमानों की मॉब लिंचिंग में हुई हत्याओं पर यहां के बहुसंख्यकों ने मुसलमानों के साथ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया था। भले ही मज़ाक़ बनाया गया हो, लेकिन कुछ लोगों ने सरकारी अवार्ड वापस कर अपना विरोध जताया था। तब मुसलमानों को लगता था कि आखिर कोई उनकी तरफ से बोल क्यों नहीं रहा? और जो बोल रहा था उस से उन्हें ख़ुशी मिल रही थी। हालिया न्यूज़ीलैंड मस्जिद में हुए आतंकी हमले में मारे गए ५० मुसलमानों की शहादत को जिस तरह वहां की अवाम ने गंभीरता से लिया और आतंकवादी के साथ ही आतंकी सोच की, सरकार की मुखिया और देश की प्रधानमंत्री जेसिंडा एर्डर्न से लेकर आम जनता ने मुख़ालिफ़त की उसको भी मुसलमानों ने सराहा। लेकिन वही मुसलमान पाकिस्तान में हुए मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए है यह समझ से परे है। क्या वहां का हिंदू मज़लूम नहीं है? जबकि विश्व के किसी भी कोने में कहीं भी मुस्लिम मुद्दे पर कुछ हुआ हो तो यहां का मुसलमान सड़कों पर उतर आता है।

धर्म को लेकर की गई किसी प्रकार की ज़बरदस्ती को इस्लाम जायज़ नहीं ठहराता। पवित्र क़ुरआन में बड़े स्पष्ट शब्दों में लिखा है, 'ला इकराहा फ़िद्दीन' यानि 'धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं' -(अल-कुरआन, २:२५६)। तो फिर पाकिस्तान के वह मुसलमान जो ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं क्या उन पर ईशवाणी से मुकरने का मामला बनाकर शरई सज़ा नहीं दी जा सकती? आखिर पवित्र क़ुरआन की आयतों की ख़िलाफ़वर्ज़ी करना अल्लाह के हुक्म को न मानना ही तो हुआ? तो फिर ईशनिंदा का मुक़दमा उन पर क्यों नहीं? हिंदुस्तानी मुसलमानों को यह आवाज़ उठानी चाहिए ताकि सारी दुनिया हक़ और बातिल का फ़र्क़ हिंदुस्तानी मुसलमानों के नज़रिये से समझ सके और पाकिस्तान में की जा रही इस्लाम की ग़लत व्याख्या का पर्दाफाश हो। हिंदुस्तानी मुसलमानों की चुप्पी जायज़ नहीं। पैग़ंबर मोहम्मद साहब ने सच को बयान करने और मज़लूम का साथ देने की नसीहत की है और मुसलमानों का पैग़ंबर की सुन्नत पर अमल करना न सिर्फ़ निहायत ज़रुरी है बल्कि उनके ईमान का तक़ाज़ा भी यही है।