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प्रियंका-चंद्रशेखर मुलाक़ात से कांग्रेस ने बदला उत्तरप्रदेश का सियासी गणित- मोदी के खिलाफ आज़ाद लड़ेंगे चुनाव
Saturday, March 16, 2019 12:36:58 PM - By संवाददाता

भीम आर्मी के समर्थन और विरोध की बढ़ी अहमियत
भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने ऐलान किया है कि वे वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि मैं संविधान और दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए वाराणसी में नरेन्द्र मोदी को चुनौती दूंगा। मैं सांसद या विधायक नहीं बनना चाहता। अगर ऐसा होता तो मैं सुरक्षित सीट चुनता। जंतर मंतर पर बसपा संस्थापक कांशीराम की बहन के साथ एक रैली को सम्बोधित करते हुए चंद्रशेखर आजाद ने पीएम मोदी पर जमकर निशाना साधाऔर इस दौरान उन्होंने लोगों से बीजेपी से सत्ता छीनने की अपील की। उन्होंने कहा कि मैं नरेंद्र मोदी को हराने बनारस जा रहा हूं मुझे आप लोगों की मदद की जरूरत है। नरेंद्र मोदी को पता चलना चाहिए की लोकतंत्र में जनता ही सबकुछ है।

इसी के साथ ही सहारनपुर में भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर की गिरफ़्तारी और फिर तबीयत ख़राब होने पर मेरठ के अस्पताल में उनके भर्ती होने की ख़बर के बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अस्पताल पहुंचकर चंद्रशेखर से मिलने के फ़ैसला कर सभी को चौंका दिया। प्रियंका के इस एक फैसले ने देश के सबसे बड़े राज्य का राजनीतिक तापमान एकाएक बढ़ा दिया।
अब खबर है कि प्रियंका की सद्भावना भेंट का नतीजा सामने आ रहा है। पहले स्मृति ईरानी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने की बात करने वाली भीम आर्मी ने नई रणनीति के तहत स्मृति ईरानी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने का मन बनाया है। भीम आर्मी के नेताओं को लगता है कि अमेठी में राहुल गांधी खुद में एक मजबूत उम्मीदवार हैं और अमेठी से अगर ईरानी चुनाव लड़ती है तो विजेता राहुल गांधी ही होंगे। भीम आर्मी की रणनीति है कि अगर ईरानी अमेठी छोड़कर कहीं और से चुनाव लड़ने उतरेंगी तभी उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारा जाएगा। उत्तरप्रदेश में दलितों को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश कर रहे चंद्रशेखर आजाद ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ और भाजपा के विरुद्ध जहां मजबूत प्रत्याशी की जरूरत हुई, वहां अपने उम्मीदवार उतारने की रणनीति तैयार की है।
आजाद की सक्रियता और चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा से उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के लिए झटका माना जा रहा है।
भले ही प्रियंका गांधी ने सीधे तौर पर मना कर दिया हो कि उनकी और आज़ाद की मुलाक़ात के राजनीतिक मायने न निकाले जाएं लेकिन सच्चाई यही है कि अब इस मुलाक़ात के रंग में यूपी की राजनीती रंगने जा रही है। दरअसल, भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित समुदाय के बीच पिछले दो साल में जिस तरह से पैठ बढ़ी है, उससे बीएसपी नेता मायावती ख़ासी चिंतित बताई जाती हैं। हालांकि चंद्रशेखर की पार्टी राजनीति में अभी तक आई नहीं है और न ही हाल-फ़िलहाल उसके आने की संभावना है, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जब तब सामने आती रहती है। उसकी इसी महत्वाकांक्षा को कांग्रेस स्वर देने का मन बना चुकी है।

प्रियंका गांधी के आने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यदि उत्साह है तो विरोधी खेमे में बेचैनी भी है। ये बेचैनी सिर्फ़ बीजेपी में ही नहीं बल्कि सपा-बसपा में भी है। वहीं प्रियंका का ज़ोर सपा-बसपा जैसी बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन में शामिल होने की बजाय छोटी पार्टियों या संगठनों को अपने साथ लाने में है। चंद्रशेखर आज़ाद से मुलाक़ात को भी उसी क्रम में देखा जा रहा है। दूसरी ओर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कम से कम चार लोकसभा सीटों पर भीम आर्मी के समर्थन और विरोध की काफ़ी अहमियत समझी जा रही है।