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......वह सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता ! / सैयद सलमान
Friday, February 22, 2019 10:54:20 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 22 02 2019

जम्मू कश्मीर के पुलवामा का नाम आते ही मन में एक टीस उठती है, दिल भारी हो जाता है, दिमाग़ सुन्न हो जाता है, क्रोध से रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और रगों में दौड़ता लहू खौलने लगता है। ज्ञात हो कि १४ फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर कायराना हमला कर दिया था जिसमें देश ने अपने ४० से अधिक वीर सपूतों को खो दिया। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हुए कायराना हमले को लेकर देशभर में लोग अपने तरीक़े से भावनाओं का इज़हार कर रहे हैं। सराहनीय बात यह है कि लोगों का हुजूम किसी धर्म से वाबस्ता नहीं है बल्कि एक सुर में शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा है और आतंकवाद की निंदा कर रहा है। इस हमले को लेकर पूरे देश में ग़म और ग़ुस्से का माहौल है और लोग चाहते हैं कि सरकार इस कायराना हमले के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करे। मुस्लिम तबक़ा भी तीखे शब्दों में इस आतंकवादी हमले की निंदा कर रहा है। देश के सुर में सुर मिलाते हुए वह भी पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहा है। हमले के बाद देश के सभी राजनीतिक दलों ने इसकी निंदा की है और सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में साथ खड़े होने की बात कही है। इन शहीदों के घर मातम है और दिलों में बदले की आग भी धधक रही है। इस कायराना हमले के बाद से ही पूरा देश सकते में है और जानना चाह रहा है कि आख़िर यह क्या, क्यों और कैसे हुआ?

पुलवामा हमले की ज़िम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। ज़ाहिर है इस आतंकी संगठन को पाकिस्तान की पुश्तपनाही प्राप्त है। पुलवामा हमले के बाद मसूद अज़हर और पाकिस्तान को लेकर मुस्लिम समाज का ग़ुस्सा भी सामने आ रहा है। उल्लेखनीय है कि पुलवामा के शहीदों के सम्मान में देश भर में जारी विरोध प्रदर्शन और श्रद्धांजलि सभाओं, बैठकों और कार्यक्रमों के बीच मुंबई के संवेदनशील माने जाने वाले भिंडी बाज़ार में भी व्यापारियों ने विरोधस्वरुप सभी दुकानें बंद रखीं। इसके साथ ही स्थानीय मुस्लिम समाज से जुड़े ज़िम्मेदारों के साथ आम मुसलमानों ने पूरे इलाक़े में घूम-घूमकर तिरंगा लहराया और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए। यह वही भिंडी बाज़ार है जहाँ कभी क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत पर पटाख़े फोड़े जाते थे। परिस्थितियों और पाकिस्तान की नापाक करतूतों ने यहाँ के मुसलमानों का ज़ेहन खोल दिया है। धर्म के नाम पर पाकिस्तान का समर्थन करने वाली आँखों पर लगी पट्टी अब उतर गई है। सिर्फ़ मुंबई ही क्यों, दिल्ली सहित देशभर के आम और ख़ास आतंकी हमले में शहीद जवानों की शहादत का बदला लेने की मांग करते हुए सड़कों पर उतर रहे हैं। खास बात यह है कि इन प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं और युवा भी शामिल हो रहे हैं।

मुस्लिम समाज का स्पष्ट मत है कि पुलवामा में हुआ आतंकी हमला यह साबित करने के लिए काफ़ी है कि पाकिस्तान आतंकवादियों का देश है। मुस्लिम समाज शहीदों के परिजनों और देश के साथ है और देश की एकता और अखंडता पर बुरी नज़र डालने वालों को करारा सबक़ सिखाने की मांग कर रहा है। यहाँ तक कि उत्तर प्रदेश के बाग़पत में मुस्लिम समाज के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सेना में मुस्लिम रेजिमेंट बनाने की मांग भी की है, ताकि मुस्लिम समाज के युवा भी सेना में भर्ती होकर देश के दुश्मन ग़द्दारों और नापाक पाकिस्तान को सबक़ सिखा सकें। ग़ुस्सा इस क़दर कि इस हमले की तर्ज़ पर ही उत्तर प्रदेश स्थित चंदौसी के कुछ मुस्लिम युवक मानव बम बनने के लिए तैयार हैं। ये युवक सरकार से इस बात की इजाज़त चाहते हैं कि वे मानव बम बनकर पाकिस्तान जाएं और वहां आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दें। शामली के कैराना में मुस्लिम युवकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने ख़ून से चिट्ठी लिखकर सेना में भर्ती करने की मांग की है। विरोध में शामिल लोग एक सुर में सरकार से एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक की मांग कर रहे हैं। मुस्लिम तबक़े की तरफ से यह भी आवाज़ उठी कि जो भी मौलाना मसूद अज़हर का सिर क़लम करेगा उसे एक करोड़ का ईनाम दिया जाएगा।

इतना सब कुछ यूँ ही नहीं हो रहा। मुसलमानों की समझ में आने लगा है कि आतंक की राह पर चलकर कश्मीर की क्या स्थिति हो गई है। आतंक की राह पर चलने वाले मुल्कों का क्या हश्र हुआ है। वह इराक़, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति से अच्छी तरह वाक़िफ़ है। आतंकवादियों के परिजनों की क्या हालत है यह भी मुस्लिम समाज से छिपी नहीं है। जिहाद के नाम पर ख़ून ख़राबा करने वाले और जन्नत की आस में बेक़सूरों का ख़ून बहाने वाले आतंकवादियों की मौत के बाद उनके परिजन दाने-दाने के मोहताज हो जाते हैं और ये सरफिरे न जाने किस जन्नत के ख़्वाब देखते हैं। फ़िदायीन बनते हैं, फ़िदायीन बनकर हमला करते हैं और फ़िदायीन हमले में जान गंवाते हैं। फ़िदायीन हमला दरअसल ख़ुदकश हमला होता है। यह ख़ुदकुशी ही तो है और ख़ुदकुशी तो इस्लाम में हराम है। यह बात तो सही है कि मौत एक अटल हक़ीक़त है, और एक दिन हर ज़िंदा वजूद को मौत की आग़ोश में जाना है। लेकिन मुस्लिम समाज से जुड़े आतंकवादियों को यह कब समझेगा कि इस्लाम को तुम अगर अपना सच्चा धर्म मानते हो तो यह भी मानना होगा कि जान लेने का हक़ सिर्फ़ अल्लाह को है। उसी ने पैदा किया है और वही मौत देगा। इंसान को सिर्फ़ जीने का इख़्तियार दिया गया है, मौत का नहीं। यही वजह है कि इस्लाम ने ख़ुदकुशी को हराम क़रार दिया है और उलमा-ए-कराम ने उसे कबीरा गुनाहों में शुमार किया है।

इस्लामी शिक्षा की रौशनी में अगर देखा जाए तो ख़ुदकुशी एक ऐसा गुनाह है जिसको करने वाला न तो तौबा कर सकता है और न ही उस पर दीन के लिहाज़ से कोई कार्रवाई की जा सकती है। ख़ुदकुशी करने के बाद वह इस क़ाबिल ही नहीं रहता कि तौबा कर के अपना गुनाह माफ़ करा सके। पवित्र क़ुरआन में कहा गया है, "ख़ुदा की राह में ख़र्च करो और अपने हाथ जान हलाकत मे न डालो और नेकी करो। बेशक ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है।"- (अल-क़ुरआन २:१९५) यानि ख़ुद की जान को हलाक करने से सीधे तौर पर मना किया गया है, फिर चाहे कैसी भी स्थिति हो। अनेक हदीसों के हवाले से मुहद्दिसीन और उलेमा ने साबित किया है कि पैग़म्बर मोहम्मद साहब को ख़ुदकुशी से सख़्त नफ़रत थी और वे इसे नापसंद फ़रमाते थे। एक हदीस में है कि किसी शख़्स ने ज़ख़्मों की शिद्दत से बेचैन होकर ख़ुद को तलवार से हलाक कर लिया। पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने इरशाद फ़रमाया कि वो शख़्स जहन्नुमी है और उस पर जन्नत हराम है। तो फिर जैश के आतंकवादी किस इस्लाम की बुनियाद पर जन्नत की ख़्वाहिश में ख़ुदकश हमले करते हैं। इसका मतलब है उनका इस्लाम, क़ुरआन और पैग़म्बर से कोई वास्ता नहीं है। उनका इस्लाम कुछ और कहता है। बेक़सूरों के क़त्ल से जन्नत मिलने की ख़्वाहिश पर ही समझ जाना चाहिए कि आतंकवादियों का सही इस्लाम की तालीम से कोई वास्ता नहीं है और वे इस्लाम की हदों से बाहर हैं। दरअसल यही लोग इस्लाम के असली दुश्मन हैं। इसलिए जैश, हिज्बुल और ऐसे ही कई आतंकी संगठनों और इस्लामिक हुकूमत के स्वघोषित अलमबरदार पाकिस्तान को इस्लाम से ख़ारिज करने का फ़तवा निकल जाना चाहिए।

आर्थिक बदहाली से गुज़र रहे पाकिस्तान को भी अब समझ जाना चाहिए कि उसके नापाक इरादे कभी अंजाम तक नहीं पहुचेंगे। कश्मीर के आतंकियों को यह बात अब समझ जाना चाहिए कि उनके मंसूबे अब नाकाम हो चुके हैं। पाकिस्तान जिस इस्लाम की बात करता है, उसमें इस तरह के कायराना हमलों के लिए कोई जगह नहीं है। हक़ीक़त यह है कि पाकिस्तान में मुस्लिम समुदाय की हालत बेहद ख़राब है। हमारे देश का मुस्लिम समुदाय पाकिस्तान से कहीं ज्यादा ख़ुशहाल और संतुष्ट है। उसे अपने वतन से प्यार है। कायराना और बुज़दिलाना हमले करवाकर पाकिस्तान मुसलमानों की नज़रों से उतरता जा रहा है। सीधी जंग की हिम्मत नहीं तो पीठ पीछे वार कर वह इस्लाम का नाम ही ख़राब कर रहा है। इस्लाम और जिहाद के नाम पर पाकिस्तान की गोद में बैठे संगठनों को हमारे देश का मुसलमान घृणा की दृष्टि से देखता है। और जो ऐसा नहीं करता वह सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता।