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अध्यात्म की धारा - तहज़ीब का संगम / सैयद सलमान
Friday, February 8, 2019 11:46:08 AM - By सैयद सलमान

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साभार- दोपहर का सामना 08 02 2019

धर्म, अध्यात्म और गंगा-जमुनी तहज़ीब की नगरी कुंभ इन दिनों भक्तिभाव से सराबोर है। पवित्र संगम स्थल पर विशाल जन सैलाब उमड़ रहा है। संगम के तट पर इन दिनों करोड़ों की तादाद में लोग आस्था की डुबकी लगा रहे हैं और पुण्य कमा रहे हैं। प्रयागराज में 'कुंभ' का नाम आते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का त्रिवेणी संगम, श्री अखाड़ो के शाही स्नान, संत पंडालों में धार्मिक मंत्रोच्चार, संगम में डुबकी लगाते भक्त जैसे अनेक मनोरम दृश्य आँखों के सामने तैर उठते हैं। देश में जब-जब हिन्दू -मुस्लिम एकता और साम्प्रदायिक सौहार्द की बात होती है तो उसे गंगा-जमुनी तहज़ीब के नाम से याद किया जाता है। दरअसल यह गंगा-जमुनी तहज़ीब तत्कालीन इलाहाबाद और अब प्रयागराज के संगम से जुड़ी है। प्रयागराज में ही गंगा और यमुना नदियां अदृश्य सरस्वती से मिलती हैं। मुस्लिम समुदाय से जुड़ी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं जिसे यहाँ लंबे अरसे से हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल के तौर पर देखा जाता रहा है। और इसीलिए गंगा-यमुना के संगम को गंगा-जमुनी तहज़ीब के मिलन की मिसाल के तौर पर याद किया जाता है।

आमतौर पर लोग कुंभ मेले को पारंपरिक धार्मिक रूप में ही ग्रहण कर रहे हैं, पर इसमें कहीं न कहीं गंगा-जमुनी तहज़ीब का दरिया भी बहता है। दोनों समुदाय की एकता इस कुंभ मेले के दौरान भी देखी जा सकती है। अनेक मिसालें हैं जो कुंभ को सामाजिक एकता का जीता-जागता उदहारण बना देती हैं। जैसे कि प्रयागराज कुंभ मेले में मुस्लिम नमाज़ियों ने इस वर्ष भी सौहार्द की ज़बरदस्त मिसाल पेश करते हुए संगम आए श्रद्धालुओं पर फूलों की बरसात कर अपना प्रेम दर्शाया। प्रयागराज के बड़े स्टेशन स्थित मस्जिद पर जुटे नमाज़ियों ने ऐसा कर खुले मन से यह जता दिया कि कुंभ का आयोजन उनके लिए भी ख़ास है और वे इसे अपना भी मानते हैं।

एक हैं मुल्ला जी लाइट वाले जो बरसों से कुंभ के अखाड़ा क्षेत्र में बिजली की सजावट करते आ रहे हैं। मुज़फ़्फ़रनगर के मोहम्मद महमूद ही मुल्ला जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। और यह नाम भी उन्हें संगम आने वाले साधु-संतों का ही दिया हुआ है। कुंभ से लौटने वाले लोगों के अनुसार मुज़फ़्फ़रनगर के मुल्ला जी प्रयागराज में कुंभ के दौरान अखाड़े में ही साधु-संतों के साथ रहते हैं। एक तरफ हिंदू समाज कुंभ में पूरे भक्तिभाव से पूजा-अर्चना और स्नान करता है तो दूसरी तरफ यहाँ के अनेक संतों ने मुल्लाजी लाइट वाले के लिए वहीं नमाज़ के लिए भी जगह उपलब्ध करवा कर अनूठी मिसाल कायम की है। जूना अखाड़ा के नागा बाबा संगम गिरी महाराज का टेंट कुंभ में बिलकुल मुल्ला जी के टेंट के बगल में लगा है। बाबा संगम गिरी महाराज कहते हैं, 'मैं जितने भी कुंभ में गया हूं वहां मैंने इन्हें देखा है। मुझे कभी उनसे उनका असली नाम पूछने की ज़रूरत नहीं लगी। हमारे लिए वह हमेशा मुल्ला जी रहेंगे और हमेशा हमारे दोस्त बने रहेंगे। केवल गिरी महाराज ही नहीं बल्कि कुंभ पहुंचे सभी साधु-संत उन्हें काफ़ी इज्जत देते हैं।

यही नहीं एक और नज़ारा कुंभ नगरी में लोगों की तारीफ़ बटोर रहा है। प्रयागराज के मशहूर व्यापारी और लाम मेंहदी के मालिक सादिक़ शफ़ीक़ पूरी श्रद्धा के साथ चैरिटी किचन के जरिए कुंभ में श्रद्धालुओं की मदद कर रहे हैं। पिछले कई सालों से वह माघ मेला और कुंभ में चैरिटी किचन चलाने में पूरी मदद करते हैं। उनके इस काम में उनका पूरा परिवार उनकी हर संभव मदद करता है। सादिक़ शफ़ीक़ के परिवार का मानना है कि सभी धर्म मानवता का संदेश देते हैं इसलिए सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए जिससे समाज और दुनिया में अमन और प्यार बना रहे।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मेडिकल विभाग के विद्यार्थी भी कुंभ में महामंडलेश्वर प्रखर महराज के प्रखर परोपकार मिशन अस्पताल में पूरी तन्मयता के साथ सेवाभाव में जुटे हैं। इनमें गले में आला लटकाए और नक़ाब पहने मुस्लिम युवतियां भी शामिल हैं। उनके साथ कुछ युवक भी हैं जो बीमार साधु-संतों की देखभाल कर रहे हैं। एएमयू के मेडिकल विभाग से २१ सदस्यों की टीम कुंभ पहुंची है, उसमें सात मुस्लिम छात्र-छात्राएं भी हैं। कुंभ में आने के पहले एएमयू के इन छात्र-छात्राओं ने पूरी तैयारी की है। दवा और ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए पैसे एकत्र किए। इसमें काफ़ी विद्यार्थियों ने उनका सहयोग किया। यह लोग साथ में लाई गई दवा बीमार साधु-संतों को भी बांट रहे हैं और साथ में चोटिल होने पर मरहम पट्टी भी कर रहे हैं। मरीज़ों के प्रति इन सबकी श्रद्धा और सेवाभाव से हर कोई बेहद प्रभावित है। कुछ मित्रों ने इन मुस्लिम डॉक्टरों को प्रयागराज कुंभ में जाने के लिए मना भी किया था। लेकिन इन डॉक्टरों ने किसी की एक न सुनी। इन डॉक्टरों का कुंभ पहुँचने का उद्देश्य यही है कि मुस्लिम समाज में एक तरह से यह संदेश जाए कि मुस्लिम समाज भी हिंदू समाज के धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हाथ बंटा रहा है। यह डॉक्टर्स यह संदेश भी देना चाहते हैं कि कुंभ के मेले में हिंदू-मुस्लिम एकता का परचम पूरी शान से लहरा रहा है।

यह मुस्लिम डॉक्टर कुंभ की हर छोटी बड़ी घटना, कुंभ के हर नज़ारे, साधु संतों के साथ बिताए पलों को अपने मोबाइल कैमरों में क़ैद भी कर रहे हैं। शायद वे जिन मित्रों और समाज के लोगों ने उन्हें कुंभ में जाने से मना किया था, उन्हें यह फ़ोटो दिखा कर आईना दिखाना चाहते हैं। टीम में शामिल एक मुस्लिम डॉक्टर के अनुसार धर्म के नाम पर समाज को बांटने वालों के बीच उनकी टीम यह संदेश देना चाहती है कि कुंभ में भी हर धर्म के लोग मौजूद हैं और एक साथ इस पवित्र आयोजन का हिस्सा बन रहे हैं। कुंभ के बहाने सामाजिक संदेश देने में भी मुस्लिम समाज पीछे नहीं है। छोटी नदियों को बचाने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों से मुस्लिम महिलाएं इन नदियों का जल कलश लेकर कुंभ मेले में पहुंची थीं। उन्होंने जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद और स्वीडन से आए चित्रकार एके डगलस को इन कलशों को सौंपा और छोटी नदियों को बचाने में सहयोग की बात कही। जिन छोटी नदियों के जल कलश ले जाए गए हैं, उनमें उत्तर प्रदेश की पाण्डु नदी, ससुर खदेड़ी नदी, बकुलाही, सई नदी, गोमती, तमसा, सेंगर, रिंद, बेतवा, केन, चंद्रवल से लेकर जम्मू की तवी, डल झील, झारखंड की स्वर्ण रेखा नदी, मध्य प्रदेश की बिछिया, महाराष्ट्र की मीठी नदी, आसाम से ब्रह्मपुत्र समेत १०८ नदियों का जल शामिल है। छोटी नदियों को बचाने की इस जद्दोजहद के लिए संगम से बेहतर क्या जगह क्या हो सकती है।

धर्म और आस्था का ऐसा संगम दुनिया में हज और कुंभ मेले के दौरान ही देखने को मिलता है जहां हर तरफ़ अध्यात्म की धारा बह रही हो। कुंभ केवल धार्मिक आयोजन न होकर सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन बन गया है। इसे केवल धर्म के चश्मे से देखना ठीक नहीं होगा। मुस्लिम समाज को भी ख़ुद को बदलना होगा। हिंदू समाज का यह आयोजन एक मौक़ा है कि मुस्लिम समाज आगे आकर इन आयोजनों के सफ़लतापूर्वक संपन्न करने में अपना सहयोग दे। कुंभ के पवित्र आयोजन में मुस्लिम समाज के कुछेक लोगों की अनेक तरह से परोक्ष या अपरोक्ष भागीदारी इसीलिए क़ाबिल-ए-तारीफ़ है क्योंकि इस माध्यम से मुस्लिम समाज गंगा-जमुनी तहज़ीब को सही मायनों में चरितार्थ कर रहा है। मुस्लिम समाज को अगर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल रहने की इच्छा है तो ऐसे आयोजनों का उसे हिस्सा बनना होगा तभी वह ख़ुद के धार्मिक आयोजनों में दूसरे समाज की हिस्सेदारी या सहयोग की उम्मीद कर सकता है वरना वह इसी तरह समाज में अलग-थलग कर दिया जाएगा। सेवाभाव के साथ हो या ज़िम्मेदारी का बोध हो, मुस्लिम समाज की हर उस पहल की तारीफ़ भी होनी चाहिए कि वह बड़े पैमाने पर कट्टरपंथी ताक़तों के चंगुल से आज़ाद हो रहा है।


@सैयद सलमान