साभार- दोपहर का सामना 23 01 2018
मुस्लिम समाज के लिए पिछले सप्ताह एक ख़बर परेशान करने वाली समझी जा रही थी जब केंद्र सरकार ने हज यात्रा के नाम पर दी जाने वाली सरकारी सब्सिडी को इस साल से पूरी तरह ख़त्म करने का फ़रमान जारी कर दिया। लेकिन जहां तक मुस्लिम समुदाय में इस बात की प्रतिक्रिया का प्रश्न है तो लगभग सभी ने इसका स्वागत किया। उच्चतम न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 2012 में केंद्र सरकार को यह निर्देश जारी किया था कि आने वाले 10 वर्षों में वह हज सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म कर दे। सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले की वजह से 2022 में यह सब्सिडी यूं भी ख़त्म होनी थी लेकिन मोदी हुकूमत ने इस मामले में तेज़ी दिखाते हुए अदालती फ़ैसले को 4 साल पहले ही अंजाम तक पहुंचा दिया।
हालांकि मुस्लिम समाज के एक तबक़े ने इसे अल्पसंख्यकों के साथ किया गया एकतरफ़ा और ग़लत फैसला बताया और उसमें भी सांप्रदायिकता का रंग तलाशा लेकिन दूसरी तरफ कुछ ऐतराज़ात के साथ मुस्लिम समाज के बड़े तबक़े ने हज सब्सिडी ख़त्म करने के फ़ैसले का स्वागत किया है, और किया भी जाना चाहिए था। बड़े पैमाने पर इस फैसले की गहन समीक्षा की जाए तो नतीजा यही निकलता है कि हज सब्सिडी का ख़त्म कर दिया जाना मुस्लिम समाज के लिए हितकारी है, क्योंकि मुसलमानों पर हज सब्सिडी को एक ऐसे सरकारी एहसान के तौर पर पेश किया जाता था जिसका बोझ मुस्लिम समाज पर बहुत ज़्यादा था और जो मुसलमानों के लिए बर्दाश्त के बाहर था। इस कथित सब्सिडी का फ़ायदा मुसलमानों को नाम मात्र के लिए ही मिलता था। कम से कम इतना तो बिल्कुल भी नहीं जितना कि शोर मचाया जाता था। प्राइवेट टूर ऑपरेटर्स से हज पर जाने से वैसे भी कोई सब्सिडी नहीं मिलती। आम धारणा के विपरीत इसमें मुसलमानों को नक़द कोई भी सहायता नहीं मिलती है। ये सब्सिडी की राशि सीधे विमान कंपनी एयर इंडिया को दी जाती है।
हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग तो लंबे वक़्त से की जा रही थी लेकिन इसके साथ ही मुसलमानों की एक मांग यह भी थी कि हज यात्रा पर जाने के लिए जो सिर्फ़ एयर इंडिया एयरलाइंस का बंधन सरकार ने लगा रखा है तो क्या यह एक तरह की मनमानी नहीं है। एक सवाल जो वर्षों से मुस्लिम समाज पूछता आया है कि आख़िर श्रद्धालु हाजियों की हज यात्रा के लिए ग्लोबल टेंडर निकालने के बजाय एयर इंडिया को मनमानी क़ीमत तय करने की इजाज़त क्यों दी जाती रही है। अब जब सब्सिडी समाप्त कर दी गई है तो मुसलमानों को एयरलाइंस चुनने की आजादी दी जानी चाहिए और इसके लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित करना चाहिए। मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर हज के दौरान एक लाख पचहत्तर हज़ार (1,75,000) हाजियों को लाने और ले जाने के लिए ग्लोबल टेंडर निकाला जाए तो निश्चित ही किसी भी हाजी को उतनी रकम नहीं अदा करनी पड़ेगी जितना कि अभी सब्सिडी के साथ अदा करनी पड़ती है। आम दिनों में जितने श्रद्धालु सऊदी अरब से उमरा करके वापस आ जाते हैं उससे कहीं ज़्यादा रकम एयर इंडिया सिर्फ़ किराए के नाम पर वसूल लेती है। इसलिए अगर यह कहा जा रहा है कि हज यात्रियों के दम पर एयर इंडिया की सांसे चल रही हैं तो उस पर यक़ीन न करने का कोई कारण नज़र नहीं आता और न ही कोई तर्क काम करता है। सरकार ने एयर इंडिया को हज सीजन में कमाई और शायद प्रॉफिट के गारंटीड जरिए से वंचित कर दिया है। सरकार ने एक ऐसी चीज वापस ले ली है जो मौजूद ही नहीं थी।
पिछले साल केंद्र सरकार की तरफ से हज सब्सिडी के नाम पर 200 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। ज़ाहिर सी बात है कि इस साल उससे भी कम किया जाता क्योंकि 2012 से केंद्र सरकार को हर साल उस में कटौती करनी ही थी। ज्ञात हो कि हजयात्रा के लिए 2016 में 405 करोड़, 2015 में 529 करोड़, 2014 में 577 करोड़, 2013 में 680 करोड़ और 2012 में 836 करोड़ रुपए सब्सिडी दी गई थी। अगर मौजूदा सरकार मुसलमानों के प्रति नरमी दिखाती भी तो एक लाख पचहत्तर हज़ार (1,75,000) हज यात्रियों पर ख़र्च की जाने वाली यह रकम 200 करोड़ से ज्यादा तो नहीं होती। इसका मतलब यह हुआ कि एक हाजी के हिस्से में साढ़े ग्यारह हज़ार रूपए (₹11,500) से भी कम ही आते। हज सब्सिडी ख़त्म किये जाने के बावजूद इस बार 80 फ़ीसदी हज यात्रियों पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है और उनको पिछले साल दी गई राशि के लगभग ही भुगतान करना होगा। यह बात इसलिए भी कही जा सकती है क्योंकि जब पिछले 5 वर्षों में कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा तो अब भी नहीं पड़ेगा। इसकी वजह हज यात्रियों को प्रस्थान/आगमन स्थलों (इम्बारकेशन प्वाइंट) का विकल्प दिया जाना है। जिन हज यात्रियों ने दिल्ली, मुंबई और कोलकता जैसे बड़े शहरों के इम्बारकेशन प्वाइंट का चुनाव किया है, उनके हज के ख़र्च में मामूली बढोतरी ही होगी।
छोटे शहरों के इम्बारकेशन प्वाइंट से जाने वालों को ही मुख्य रूप से सब्सिडी मिलती थी। इस बार उनको बड़े शहरों के इम्बारकेशन प्वाइंट का विकल्प दिया गया था और 80 फीसदी हज यात्रियों ने इस विकल्प का चुनाव किया है। ऐसे में निश्चित तौर पर 80 फ़ीसदी हज यात्रियों पर सब्सिडी ख़त्म होने का कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। जिन हज यात्रियों ने ज़्यादा पैसे ख़र्च करने की सहमति दिखाई है उन्होंने अपनी पसंद और सहूलियत के हिसाब से छोटे शहरों के इम्बारकेशन प्वाइंट का चुनाव किया है।इसलिए हज सब्सिडी ख़त्म होने का असर मुख्य रूप से उन हज यात्रियों पर होगा जिन्होंने छोटे शहरों के प्रस्थान/आगमन स्थलों (इम्बारकेशन प्वाइंट) से हज के लिये जाने का विकल्प चुना है।
मसलन, अगर औरंगाबाद, नागपुर या अन्य राज्यों के छोटे एयरपोर्ट से कोई व्यक्ति हज पर जाता है तो उसे हवाई किराये के तौर पर अनुमानतः लगभग एक लाख 10 हजार रुपये अदा करने होंगे, लेकिन अगर वही हज यात्री मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई या कोलकाता से जाता है तो उसको तक़रीबन 75 हजार रुपये ही देने होंगे। आवेदन में इस बार स्पष्ट कर दिया गया था की छोटे शहरों के इम्बारकेशन प्वाइंट का चुनाव करने वालों को अधिक किराया देना होगा। ऐसे में यह तय है कि लोगों ने अपने वित्तीय इंतज़ाम और सहूलियत के मुताबिक विकल्प चुने होंगे। दरअसल इस तथाकथित सब्सिडी को वापस लेना आंकड़ों के साथ जादूगरी करने जैसा है। यह कुछ ऐसा ही है कि किसी की जेब से पैसे निकाल लिए जाएं और उसका कुछ हिस्सा उसे ही ख़ैरात कर दिया जाए।
चूंकि यह सब्सिडी इस साल अचानक ख़त्म कर दी गई है इसलिए कुछ यात्रियों को परेशानी ज़रूर हो सकती है जिन्होंने बड़ी मुश्किल से हज यात्रा पर जाने के लिए इंतज़ाम किया होगा। हालांकि इसके बावजूद यह बात कही जा सकती है कि इस बात का नुकसान कम और फ़ायदा ज़्यादा है। मुसलमान अब उन तानों से ख़ुद को महफ़ूज़ रख सकेंगे जो हज जैसे मुक़द्दस और पवित्र फ़र्ज़ की अदायगी के बाद उनके माथे पर एहसान की सूरत में दर्ज कर दिया जाता है। जिसकी बुनियाद पर वर्षों से मुस्लिम समाज को हज सब्सिडी की ख़ैरात के नाम पर हज यात्रा पर जाने का ताना दिया जाता रहा है। मुस्लिम समाज को ख़ुद आगे आकर इस विषय पर अपनी बात पूरे विश्वास से रखनी चाहिए और कहना चाहिए कि उसे सरकार की यह ख़ैरात कतई मंजूर नहीं है। वैसे भी हज सब्सिडी निश्चित रूप से ग़ैर-शरई है और इसके बारे में पवित्र क़ुरआन शरीफ़ का संदेश है, "लोगों पर वाजिब है कि महज़ अल्लाह के लिए ख़ाना-ए-काबा का हज करें जिन्हें वहां तक पहुंचने की इस्तेताअत है अर्थात जो सक्षम हैं।"- (अल-क़ुरआन 3:97)