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भिक्षुक बनते शिक्षक / सैयद सलमान
Thursday, November 16, 2017 9:57:01 AM - By सैयद सलमान

सैयद सलमान
साभार- दो बजे दोपहर 16 11 2017

एक तरफ़ तो महाराष्ट्र विधान परिषद में मुंबई शिक्षक सीट के लिए मतदाता पंजीकरण शुरू है तो दूसरी तरफ़ मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, रायगढ़, रत्नागिरी, नासिक, औरंगाबाद, पुणे और महाराष्ट्र के अन्य ज़िले के अनएडेड स्कूलों के शिक्षक बड़ी संख्या में आंदोलन की राह पर हैं। अपनी विभिन्न मांगों को लेकर यह शिक्षक मुंबई के आज़ाद मैदान में हड़ताल पर बैठे हैं। महारष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ बैठे इन शिक्षकों की मांगों पर अब तक कोई ठोस आश्वासन न मिलने से इस आंदोलन के लंबा खिंचने के आसार हैं. इन शिक्षकों की सबसे पहली और बड़ी मांग तो यही है कि उनसे शिक्षा से जुड़ा कार्य ही लिया जाए जिसकी उन्होंने ट्रेनिंग ली है. शिक्षक नेताओं का आरोप है की सरकार जानबूझ कर उनसे शिक्षा के अलावा कई अन्य कार्य करवाती है. इन शिक्षकों का तर्क है कि इस से उनकी और विद्यार्थियों को समय न दे पाने के कारण खुद विद्यार्थियों की शिक्षा पर गहरा नकारात्मक असर पड़ रहा है.
शिक्षकों की मांगों का सिलसिला इतना भर नहीं है कि उनसे गैर शैक्षणिक काम लेना बंद किया जाए, बल्कि उनकी मांगों में अनुदान की मांग भी शामिल है. बेमुद्दत हड़ताल पर बैठे शिक्षक मांग कर रहे हैं कि 1 और 2 जुलाई 2016 को स्चूलों के अनुदान से संबंधित जारी किये गए सरकार के आदेश के मुताबिक़ उन्हें ग्रांट दिया जाए और इस विषय पर दिसंबर में होने वाले शीतसत्र में असेंबली में श्वेतपत्र जारी किया जाए. इसी के साथ शिक्षा देने के लिए नियुक्त शिक्षकों को शिक्षकेतर कार्य में झोंक कर उनका मानसिक उत्पीड़न करने वाले शिक्षा सचिव को फ़ौरन उनके पद से हटाया जाए.
अनएडेड स्कूलों की मांगों को भी अपने आंदोलन का हिस्सा बनाकर शिक्षकों ने सरकार को घेरने की योजना बनाई है. शिक्षकों ने मांग रखी है कि अनएडेड प्राइमरी और सेकंड्री स्कूलों को फ़ौरन अनुदान देकर उन्हें राहत पहुंचाई जाए. जिन एक हज़ार छः सौ अट्ठाईस (1628) स्कूलों के लिए 20 प्रतिशत अनुदान की घोषणा की गयी है उन्हें तत्काल वह अनुदान दिया जाए. अपनी मांगों के समर्थन में जब शिक्षकों ने 4 अक्टूबर 2016 को औरंगाबाद में आंदोलन किया था तब उनपर सरकार ने केस दर्ज कर उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश की थी. शिक्षकों की मांग है कि उन शिक्षकों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों को फ़ौरन वापस लिया जाए. शिक्षकों ने मांग रखी है कि मुंबई मनपा के पंजीकृत लेकिन अनएडेड स्कूलों को भी फ़ौरन ग्रांट दी जाए. शिक्षकों की सबसे ज्यादा नाराज़गी इस बात को लेकर है कि उनसे शिक्षा छोड़कर सारे काम लिए जा रहे हैं. आखिर तंग आकर उन्हें आंदोलन का मार्ग अपनाना पड़ा. आंदोलन के ज़रिये शिक्षक राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, शिक्षामंत्री विनोद तावड़े और वित्तमंत्री सुधीर मुनगंटीवार तक अपनी बात पहुँचाना चाहते हैं ताकि उनके साथ हो रही नाइंसाफ़ी पर अंकुश लगाया जा सके.
शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक विक्रमजी काले, विधायक बलराम पाटिल और विधायक दत्तात्रय पाटिल आदि नेताओं ने आंदोलन कर रहे शिक्षकों से मिलकर हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया है. शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष शेखर भोईर, आदर्श शिक्षक सेवा संघ के अध्यक्ष राजेश सिंह, रमेश ठाकुर और स्वाभिमान शिक्षक संगठना के के.पी. पाटिल ने भी इन शिक्षकों को समर्थन देने की घोषणा की है.
विधायक विक्रमजी काले ने शिक्षकों के समर्थन का खुला ऐलान करते हुए उनकी समस्याओं को आगामी असेंबली सत्र में उठाने का वादा किया है. विक्रम काले तो यहाँ तक तैयार हैं कि अगर शिक्षकों की समस्याओं पर सरकार द्वारा सहानुभूतिपूर्वक विचार नहीं किया गया तो वे आगामी दिनों में पूरे राज्य के सभी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थान से जुड़े लोगों को साथ लेकर राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे.
भाजपा नेता और शिक्षक सीट के प्रबल दावेदार माने जा रहे डॉ. दयानंद तिवारी ने भी शिक्षकों के प्रति अपना समर्थन जताते हुए कहा कि, जो शिक्षक हड़ताल पर बैठे हैं उनकी मांगें जायज हैं. प्रशासन के अधिकारियों को शिक्षा की समझ नहीं है इसलिए वह महाराष्ट्र की शिक्षा प्रणाली को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रहे हैं. शिक्षा विभाग के इस रवैए से, बिना ज्ञान के बनाई गई नीतियों के कारण सभी शिक्षक नाराज हैं. सरकार को तुरंत इस विषय का संज्ञान लेना चाहिए और उनकी जायज़ मांगों को पूरा किया जाना चाहिए, नहीं तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे. सरकार को समझना चाहिए कि शिक्षक अगर खुश होगा तो निर्माण करेगा और जब शिक्षक नाराज होगा तो वह सरकार और शासन को उखाड़ कर फेंक देगा. शिक्षकों में राष्ट्रनिर्माण की अकूत ताकत होती है, इसीलिए शिक्षक और शिक्षा जगत पर समझ बूझकर नीतियों का निर्माण करना चाहिए.
मुंबई जूनियर कॉलेज टीचर्स यूनियन के अध्यक्ष अमर सिंह तो शिक्षामंत्री विनोद तावड़े के रवैये से ही नाराज़ नज़र आ रहे हैं. उन्होंने विनोद तावड़े के उस बयान पर जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘मैं शिक्षामंत्री हूँ शिक्षक मंत्री नहीं’ की आलोचना करते हुए कहा कि क्या शिक्षक के बिना शिक्षा की कल्पना भी की जा सकती है ? शिक्षकों के प्रति असंवेदनशीलता का आरोप लगाते हुए उन्होंने विनोद तावड़े को शिक्षामंत्री पद के अयोग्य बताया और शिक्षकों के आंदोलन को अपना समर्थन जताया.
इस पूरे मामले पर हमसे बात करते हुए शिक्षामंत्री विनोद तावड़े ने शिक्षको की मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की बात कही. उन्होंने शिक्षकों को दिए जा रहे ऑनलाइन काम के बोझ को स्वीकार करते हुए कहा कि मैं खुद इस समस्या पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा हूँ. लेकिन उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि आख़िर कांग्रेस के शासनकाल में भी शिक्षकों से शिक्षकेतर काम लिए जा रहे थे तब इस तरह के आन्दोलन क्यों नहीं हुए? उन्होंने अनुदान के मसले पर कहा कि हमने कम से कम 20 प्रतिशत के हिसाब से 600 करोड़ की राशि अनुदान के लिए दी है, जबकि कांग्रेस के शासनकाल में इस पर कोई काम नहीं हुआ. विनोद तावड़े ने आश्वासन दिया कि शिक्षकों की मांग पर सरकार गंभीरतापूर्वक विचार करेगी.
अब देखने वाली बात यह है कि सरकार और शिक्षकों के बीच की यह दूरी कब खत्म होती है. क्योंकि राष्ट्रनिर्माता शिक्षकों की नाराज़गी सरकार के लिए ख़तरे की घंटी है. सरकार को तुरंत उनकी मांगों पर गंभीर होकर निर्णय लेना होगा. गुरुओं के प्रति अगाध श्रद्धा वाले देश में गुरुओं का आंदोलन करना सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है.