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RIO 2016- सिंधु, साक्षी ने भारत की लाज बचाई
Monday, August 22, 2016 9:14:38 AM - By एजेंसी

10 से 15 पदक का था दावा, दो में ही सिमट गए
भारत की बेटियों पर पूरा हिंदुस्तान गर्व कर रहा है लेकिन कटु सत्य यही है कि सवा अरब भारतीयों की उम्मीदों को लेकर रियो ओलिंपिक में गए 117 खिलाड़ी सिर्फ दो पदक हासिल कर पाए। अब चार साल बाद खिलाड़ियों का मेला 2020 में जापान की राजधानी टोक्यो में लगेगा।

रियो में अपने सबसे बड़े दल के साथ उतरे भारत को कई खिलाड़ियों से उम्मीद थी। लेकिन अभिनव बिंद्रा, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा और लिएंडर पेस जैसे दिग्गज कुछ नहीं कर पाए। भारत को बेटियों की बदौलत जो दो पदक मिले उनमें से कांस्य का पहला पदक पहलवान साक्षी मलिक ने दिलाया, तो दूसरा रजत के रूप में पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में जीता। अंतिम दिन आखिरी उम्मीद पहलवान योगेश्वर दत्त से थी, लेकिन 65 किलो भारवर्ग के क्वालीफाइंग राउंड में ही हारकर बाहर हो गए। इस तरह भारत 207 देशों के बीच 67वें स्थान पर रहा।

अमेरिका की बादशाहत : अमेरिका 45 स्वर्ण सहित कुल 120 पदक जीतकर शीर्ष पर रहा तो ब्रिटेन 27 स्वर्ण सहित 66 पदकों के साथ दूसरे और चीन 26 पीले तमगों सहित 70 पदक लेकर तीसरे स्थान पर रहा।

पहले पदक की साक्षी : पहलवान साक्षी भारत के पहले पदक की साक्षी बनीं। उन्होंने आठ घंटे में पांच बाउट खेलकर कांस्य पदक जीता। क्वार्टर फाइनल में हारने के बाद उन्होंने रेपचेज में अपने दोनों मुकाबले जीतकर देशवासियों को खुश होने का मौका दिया।

सिंधु की चांदी : साक्षी के बाद शटलर पीवी सिंधु ने रजत पदक जीतकर जश्न को दोगुना कर दिया। वो भले ही फाइनल में दुनिया की नंबर एक शटलर स्पेन की कैरोलिन मारिन से हार गईं, लेकिन फाइनल तक के अपने सफर में दिग्गज खिलाड़ियों को धराशायी कर सिंधु ने सभी का दिल जीत लिया।

जिन्होंने बिखेरी चमक :

दीपा करमाकर : जिम्नास्ट दीपा करमाकर ने अपने प्रोडुनोवा वॉल्ट से सभी का दिल जीतकर फाइनल तक का सफर तय कर इतिहास रचा। वो फाइनल में 15.066 अंकों के साथ चौथे स्थान रहीं, लेकिन फाइनल में पहुंचने वाली पहली जिम्नास्ट बनकर उन्होंने देशवासियों ही नहीं पूरी दुनिया का दिल जीत लिया।

अभिनव बिंद्रा : दिग्गज निशानेबाज अभिनब बिंद्रा का यह अंतिम ओलिंपिक था और वे पदक जीतने से चूक गए। 10 मीटर एयर राइफल के फाइनल में अच्छी शुरुआत के बाद निर्णायक मौके वे लड़खड़ाए और शूट ऑफ में हारकर उन्हें चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

ललिता बाबर : लंबी दूरी की धाविका ललिता बाबर महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेज के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उनसे 32 साल पहले पहले पीटी उषा ने 400 मीटर बाधा दौड़ के फाइनल में जगह बनाई थी। यही नहीं उन्होंने हीट में राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया। हालांकि वे फाइनल में दसवें स्थान पर रहीं।

जिन्होंने किया निराश : गगन नारंग, जीतू राय (निशानेबाजी), साइना नेहवाल (बैडमिंटन), योगेश्वर दत्त (कुश्ती), सानिया मिर्जा, रोहन बोपन्ना, लिएंडर पेस (टेनिस), दीपिका कुमारी (तीरंदाजी), विकास कृष्णन व शिव थापा (मुक्केबाजी), पुरुष हॉकी टीम, टिंटू लुका, विकास गौड़ा व पुरुष रिले टीम (एथलेटिक्स)।

दो साल में 180 करोड़ खर्च : खेल मंत्रालय ने टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) स्कीम के तहत दो साल में खिलाड़ियों की ट्रेनिंग पर 180 करोड़ रुपए खर्च किए। इसके तहत करीब 100 खिलाड़ियों को मदद दी गई। हालांकि इसका बजट 45 करोड़ था, जिसे चार गुना किया गया।

40 फीसदी कोच विदेशी: सरकार ने अपनी ओर सुविधाएं देने में कोई कमी नहीं छोड़ी। विदेशी कोच भी नियुक्त किए। लंदन में जहां 20 फीसदी विदेशी कोच थे, वहीं रियो में यह आंकड़ा 40 फीसदी हो गया। यहीं नहीं व्यक्तिगत कोच, मसाजर और ट्रेनर भी बढ़ा दिए गए।

व्यक्तिगत कोच: ऐसा पहली बार हुआ जब खिलाड़ियों को व्यक्तिगत कोच दिए गए। इनमें से कुछ को तो रियो भी साथ भेजा गया। कैंप के अलावा बाहर भी यह कोच इनके साथ रहे। पहले जहां खिलाड़ियों को तीन-चार दिन पहले ओलिंपिक में भेजा जाता था इस बार 15-20 दिन पहले ही भेज दिया गया। ताकि वे वहां के माहौल के अनुसार खुद को ढाल सकें।

डोपिंग का भी लगा डंक : ओलिंपिक से पहले ही खिलाड़ियों को डोपिंग का डंक भी लगा, जो खेलों का महाकुंभ खत्म होने के दो दिन पहले तक खिलाड़ियों को डंसता रहा। यह सिलसिला पहलवान नरसिंह यादव से शुरू हुआ तो उन्हीं के साथ खत्म हुआ। इनके अलावा शॉटपुटर इंद्रजीत सिंह और मिल्खा सिंह का 400 मीटर का रिकॉर्ड तोड़ने वाले धर्मवीर सिंह भी इसकी चपेट में आ आए। इन दोनों को तो रियो जाने से रोक लिया गया।

पिछले बीस साल का लेखा-जोखा

वर्ष, खिलाड़ी, स्पर्धाएं, पदक

1996, 49, 13, 01

2000, 65, 08, 01

2004, 73, 14, 01

2008, 67, 12, 03,

2012, 83, 13, 06

2016, 117, 15, 02