Friday, April 26, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) अक्षरा सिंह और अंशुमान राजपूत: भोजपुरी सिनेमा की मिली एक नयी जोड़ी .... 2) भारतीय मूल के मेयर उम्मीदवार लंदन को "अनुभवी सीईओ" की तरह चाहते हैं चलाना.... 3) अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ की फिल्म का कलेक्शन पहुंचा 50 करोड़ रुपये के पार.... 4) यह कंपनी दे रही ‘दुखी’ होने पर 10 दिन की छुट्टी.... 5) 'अब तो आगे...', DC के खिलाफ जीत के बाद SRH कप्तान पैट कमिंस के बयान ने मचाया तूफान.... 6) गोलीबारी... ईवीएम में तोड़-फोड़ के बाद मणिपुर के 11 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का फैसला.... 7) पीएम मोदी बोले- कांग्रेस ने "टेक सिटी" को "टैंकर सिटी" बनाया, सिद्धारमैया ने किया पलटवार....
लिव -इन रिलेशनशिप- काँटों भरी डगर
Wednesday, October 7, 2015 - 7:41:25 PM - By लक्ष्मी यादव

लिव -इन रिलेशनशिप- काँटों भरी डगर
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रज्ञा नार्वेकर (नाम परिवर्तित )के पास आज न तो इज्जत है और न पैसा। उसके लगभग १५ लाख रुपये उड़ चुकें हैं। एक बैंक अधिकारी के रुप मे कार्यरत दीपक नायर के साथ कलवा पुलिस स्टेशन की सीमा में आनेवाले पारसिक नगर में पिछलें कई सालों से प्रज्ञा रहती थी,बिना शादी किये पति-पत्नी कि तरह। दीपक जहाँ कुंवारा था,वहीँ प्रज्ञा दो बच्चोँ कि माँ है। दीपक उसे हमेशा शादी करने क झांसा देता रहा। इस दौरान प्रज्ञा प्रेग्नेंट हो गई। उसने दीपक पर शादी करने क दबाव डाला तो दीपक ने समझा -बुझाकर उसका गर्भपात करवा दिया। कुछ समय के बाद प्रज्ञा को लगा कि दीपक उससे शादी नहीं करने वाला है ,वह लिव -इन में ही रहेगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दीपक प्रज्ञा से करीब १५ लाख रूपए ऐंठ चुका था। आख़िरकार प्रज्ञा की शिकायत पर कलवा पुलिस ने दीपक पर बलात्कार ,धोखाधड़ी व ठगी का मामला दर्ज किया। अब प्रज्ञा सपनो की जमीन से सच्चाई के खुरदुरे रास्तें पर आ गई है-व कहती है "मेरी ही गलती है। मैं विवाहित व दो बच्चों की माँ हूँ। मुझे कदम सोच समझ कर उठाना चाहिए। जो गलती मैंने की थी, उसकी सजा मुझे मिल रही है।"
हम इक्कीसवीं सदी में, मॉडर्न बनने की चाहत में जिन सामाजिक बुराइयो को अपना रहें हैं, उसमें से एक लिव -इन रिलेशनशिप की यह सचाई है।दीपक जैसे आज के युवाओं में रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धता व अपनत्व की जगह मौजमस्ती व धन लिप्सा लेती जा रही है। वे जिम्मेदारियों से खुद को अछूता रखना चाहते हैं। उन्हें दांपत्य जीवन में बढ़ते बिखराव व तलाक के झंझटो से डरकर लिव -इन-रिलेलिवशनशिप या सहजीवन जादा सुविधाजनक लगता है। पर दीपक ने निश्चित रूप से प्रज्ञा को सुखी जीवन,विवाह के सपने दिखाएं होंगे तभी तो प्रज्ञा उसके ऊपर भरोसा कर लिव -इन में रहने लगी।
लिव -इन ,सहजीवन यानी बंधनमुक्त साहचर्य दरअसल विवाह नामक संस्था को चुनौती देता है। शहरीकरण, औद्योगीकरण में समाज की पुरानी मान्यताऐं व आइडियालॉजी ख़त्म तो हो रही है पर बदले में कोई नई स्वस्थ विचार पद्धति व मान्यता लोगों में पनप नहीं रही है। एक सामाजिक संस्था के सर्वेक्ष ण में पाया गया है कि विवाह को मात्र दिखावा, आडंबर व सामाजिक दकियानूसी परंपरा मानने वाले, परम्पराओं को ठेंगा दिखाकर आपसी सहमति के आधार पर सहजीवन वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। ऐसे युवा एलानिया कहते हैं-हम विवाह विरोधी नहीं हैं बल्कि तनाव विरोधी हैं। नीलम और विकास की मिसाल लीजिये। विकास टीवी सीरियल्स में स्क्रिप्ट राइटर है जब की नीलम एक वि ज्ञापन कंपनी में में कॉपी राइटर है। ६ साल पहले दोनों की मुलाकात एक पार्टी में हुई थी। पहली ही नजर में आकर्षण हुआ। चार-पांच महीनो तक की दोस्ती के बाद दोनों ने लिव-इन-रिलेशनशिप पर सहमति दिखाई और इसके दूसरे दिन ही नीलम मीरा रोड के अपने पेइंग गेस्ट रूम से सारा सामान लेकर विकास के घर गोरे गाव आ गई । साढ़े पांच साल से दोनों साथ रहते है। कोई शि कायत नहीं है। हंसी ख़ुशी जीवन बीत रहा है। विकास कहता है हम दोनों वर्त्तमान में जीते है। यह रिश्तो को यूज़ एंड थ्रो समझने की नीयत नहीं है बल्कि आज के समाज की एक शैली है। अगर हम आज अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेज रहे है तो बैल गाड़ी युग की मानसिकता क्यों रखें?" नीलम भी इस सहजीवन से संतुष्ट व प्रसन्न नजर आती है।
लेकिन क्या सच मुच में लीव-इन-रिलेशनशिप का मतलब संतोष व प्रसन्नता होता है? विकास व नीलम की तरह या फिर इसमें प्रज्ञा नार्वेकर के अनुभवों की कड़वी हकीकत भी शामिल है? इन सवालो का जवाब खोजना सरल नहीं है क्योकि यह एक प्रकार से रिश्तो के संक्रमण काल का दौर है। आज हर क्षेत्र में भारतीय स्त्री ने पुरूष के पारम्परिक किलो में सेंध लगाई है। पर एक आम कहावत यह भी है की पुरुष स्वभाव से ही बहुसंगमनी (पोलिगेमस) होता है। इसे हमारे समाज में अपवाद नहीं मना जाता पर हलचल तो तब मची जब परिवार की औरतों ने ही पुरुष क्षेत्र के इस एकाधिकार में सेंध लगाई व विवाह पूर्व तथा विवाहेतर अवैद्य सम्बन्ध बनाने शुरू कर दिए। लिव-इन की अवधारणा यही से शुरू हुई। और जो आम धारणा थी कि भारतीय परिवार जीवन में नैतिकता को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है, व खंडित होती हुई दिखी।
समाज वैज्ञानिक डॉ रंजय कुमार सिंह कहते हैं- जिस तरह की सामाजिक प्रवृतियां आज समाज में फैली हुई हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जो खुलापन घरों को प्रदूषित कर रहा है, उसके चलते अवैध सम्बन्धो का बाजार खूब गर्म हुआ है जिसका एक रूप लिव-इन है। यह रूप महानगरो व बड़े शहरों में ज्यादा प्रचलित है। बिना विवाह किये एक साथ रहना, इसे एक प्रकार से अवैधानिक विवाह कहा जा सकता है जिसमे एक दूसरे पर विवाह का कोई बंधन लागू नहीं होता।तलाक का कोई झंझट नहीं होता। जबतक साथ रहना चाहे, रहें और जब मुक्त होना चाहें, अलग हो जाएं। कई बार लोग एक दूसरे को आजमाने के लिए भी इस प्रकार के सम्बन्ध बना लेते है ताकि सफल रहे तो बादमे विवाह भी कर सकें लेकिन इसका एक्सपीरी एंस खट्टा-मीठा होता है, इसे भी ध्यान रखा जाये। यह बात सही है की महानगरो में बिन ब्याहे जोड़ो की संख्या में इजाफा हुआ है, पर यह इजाफा गर्व करने की बात नहीं है अपितु इसपर सोचने-विचार करने की जरुरत है।



- लक्ष्मी यादव