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तिल, तर्पण और श्राद्ध
Saturday, October 3, 2015 - 8:29:32 AM - By Abhay Mishra

तिल, तर्पण और श्राद्ध
श्राद्ध से प्रसन्न होते हैं पितृगण
१) आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानि च। प्रयच्छन्तु तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामहा:।। (लघ्वाश्वलायन स्मृति २४/१०२)
श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुए पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष तथा स्वर्ग आदि प्रदान करते हैं।
२) श्राद्ध के योग्य समय हो या न हो, तीर्थ में पहुंचते ही मनुष्य को सर्वदा स्नान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए। (पद्मपुराण, सृष्टि ३४/२१८-२१९)
३) शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्न श्राद्ध के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। (मनु स्मृति ३/२७८)
४) रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए, उसे राक्षसी कहा गया है। दोनों संध्याओं में तथा पूर्वाह्नकाल में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। न च नत्तंâ श्राद्धं कुर्वीत (आपस्तम्बधर्मसूत्र २/७/१७/२३)
५) चतुर्दशी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। जो चतुर्दशी को श्राद्ध करता है, उसके घर में नवयुवकों की मृत्यु होती है। श्राद्ध करनेवाला भी युद्ध का भागी बनता है। (महाभारत, अनु. ८७/१६-१७)
६) दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमंदिर-ये दूसरे की भूमि में नहीं आते क्योंकि इनपर किसी का स्वामित्व नहीं होता। (वूâर्मपुराण, उ. २२/२६/१७)
७) श्राद्ध एकांत में, गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण, नीच मनुष्यों की दृष्टि पड़ने पर वह पितरों को नहीं पहुंचता। एकान्ते तु गृहे गुप्ते पितृणां श्राद्धमिष्यते (पद्मपुराण, सृष्टि ३४/२०७-२०८)
८) श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है। श्राद्धार्हानब्राम्हणांस्तेन सृजता पद्मयोनिना (स्वंâदपुराण, नागर. २२१-४७)
९) श्राद्ध का भोजन स्त्री को नहीं करना चाहिए। (बृहत्पराशर स्मृति ७/७१)
१०) नाना, मामा, भांजा, गुरु, ससुर, दौहित्र, जामाता, बांधव, ऋत्विज् तथा यज्ञकर्ता, इन दसों को श्राद्ध में भोजन कराना चाहिए। (मनुस्मृति ३/४८)
११) मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, सुपारी, कुलथी, वैâथ, महुआ, अलसी, पीली सरसों, चना-ये सब वस्तुएं श्राद्ध में वर्जित हैं। (पद्मपुराण, सृष्टि ९/६४-६६)
१२) श्राद्ध भूमि में सर्वत्र तिलों को बिखेरना चाहिए। तिलों के द्वारा असुरों से आक्रांत भूमि शुद्ध होती है। तिलैर्वाविकिरेत् (गौतमधर्मसूत्र २/६/२७)
१३) जो अपनी तर्जनी अंगुली में चांदी की अंगूठी धारण करके पितरों को तर्पण करता है। उसका तर्पण लाख गुना अधिक फल देनेवाला होता है। यदि अनामिका अंगुली में सोने की अंगूठी पहनकर तर्पण करे तो वह करोड़ों गुना अधिक फल देनेवाला होता है। (पद्मपुराण, सृष्टि ५१/५६-५७)
१४) जो श्राद्ध तिलरहित होता है उसका हविष्य पिशाच ले जाते हैं। (महाभारत, अनु. ९०/२२)



साभार- दोपहर का सामना व अभय मिश्र