अकबर के समकालीन सम्राट अकबर द्वारा मान सम्मान पाने वाले दो ज्योतिषी जिनकी कहवाते जन मानस के मुख पर ऐसी बैठी की आज भी बुजुर्गो द्वारा हम यदा कदा सुनते रहते है।
“ज्यादा खाये जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय। रहे निरोगी जो कम खाये, बिगरे काम न जो गम खाये।”
ऐसी अनेक कहावतों से हमें जिन्दगी के विभिन्न पहलुओं का सटीक मार्गदर्शन मिलता है। घर के बुजुर्ग ऐसी अनेक कहावतों से, समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं।
कान्वेन्ट विद्यालयों में पढ़कर आयी नयी पीढ़ी इन कहावतों से अनभिज्ञ है, क्योंकि ये हिन्दी में है, हिन्दी में भी देहाती भाषा में, जिसे वे आसानी से नहीं समझ पाते। ये कहावतें,
मैं विशेष रूप से नयी पीढ़ी के लिए लाया हूंँ, ताकि वे इन्हें पढ़कर इनकी विश्वसनियता को जांचे और न केवल अपने ज्ञान में वृद्धि करें, साथ ही ‘हिन्दी’ की महान ‘साहित्यिक विरासत’ पर भी गर्व कर सकें।
पाठकजनों!! आज मैं आपके सम्मुख रख रहा हूं ‘‘घाघ व भड्डरी की कहावतें‘‘। शुद्ध देहाती हिन्दी भाषा में लिखी गयी इन कहावतों को हम आसानी से कंठस्थ करके अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं। इस लेख में मैंने केवल “नीति व स्वास्थ्य” संबंधी कहावतों को ही शामिल किया है।
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ मेें पंथ आषाढ़ में बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वारें दूध न कातिक मही।
मगह न जारा पूष घना, माघेै मिश्री फागुन चना।
घाघ! कहते हैं, चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, वैशाख (अप्रैल-मई) में तेल, जेठ (मई-जून) में यात्रा, आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, सावन (जौलाई-अगस्त) में हरे साग, भादों (अगस्त-सितम्बर) में दही, क्वार (सितम्बर-अक्तूबर) में दूध, कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में मट्ठा, अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा, पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां, माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री, फागुन (फरवरी-मार्च) में चने खाना हानिप्रद होता है।
जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव।
वाको यही बताइये घुॅँइया पूरी खाव।।
घाघ! कहते हैं, यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी की सब्जी व पूडी खाने की सलाह दो। इसके लगातार सेवन से उसे कब्ज की बीमारी हो जायेगी और वह शीघ्र ही मरने योग्य हो जायेगा।
पहिले जागै पहिले सौवे, जो वह सोचे वही होवै।
घाघ! कहते हैं, रात्रि मे जल्दी सोने से और प्रातःकाल जल्दी उठने से बुध्दि तीव्र होती है। यानि विचार शक्ति बढ़ जाती हैै।
प्रातःकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी।
वाके घर मा वैद ना आवे बात घाघ के जानी।।
भड्डरी! लिखते हैं, प्रातः काल उठते ही, जल पीकर शौच जाने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है, उसे डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
खेती पाती बीनती, और घोड़े की तंग।
अपने हाथ संँभारिये, लाख लोग हों संग।।
घाघ! कहते हैं, खेती, प्रार्थना पत्र, तथा घोड़े के तंग को अपने हाथ से ठीक करना चाहिए किसी दूसरे पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
जाकी छाती न एकौ बार, उनसे सब रहियौ हुशियार।
घाघ! कहते हैं, जिस मनुष्य की छाती पर एक भी बाल नहीं हो, उससे सावधान रहना चाहिए। क्योंकि वह कठोर ह्दय, क्रोधी व कपटी हो सकता है। ‘‘मुख-सामुद्रिक‘‘ के ग्रन्थ भी घाघ की उपरोक्त बात की पुष्टि करते हैं।
आचार्य ज्योतिष रजनीश मिश्रा