एक प्राचीन कहानी है। एक सम्राट अपने मंत्री पर नाराज हो गया। और उसने मंत्री को आकाश-छूती एक मीनार में कैद कर दिया। वहां से कूद कर भागने का कोई उपाय न था। कूद कर भागता तो प्राण ही खो जाते। लेकिन मंत्री जब कैद किया जा रहा था, तब उसने अपनी पत्नी के कानों में कुछ कहा।
पहली ही रात पत्नी मीनार के करीब गयी। उसने एक साधारण-सा कीड़ा दीवार पर छोड़ा। और उस कीड़े की मूंछों पर थोड़ा-सा मधु लगा दिया। कीड़े को मधु की गंध आयी। मधु को पाने के लिए कीड़ा मीनार की तरफ, ऊपर की तरफ सरकने लगा। मूंछ पर लगा था मधु, तो गंध तो आती ही रही। और कीड़ा मधु की तलाश में सरकता गया। उस कीड़े की पूंछ से एक पतला से पतला रेशम का धागा पत्नी ने बांधा हुआ था। सरकता-सरकता कीड़ा उस तीन सौ फीट ऊंची मीनार के आखिरी हिस्से पर पहुंच गया। मंत्री वहां प्रतीक्षा कर रहा था। कीड़े को उठा लिया, पीछे बंधा हुआ रेशम का धागा पहुंच गया। रेशम के धागे में एक पतली-सी सुतली बांधी। सुतली में एक मोटा रस्सा बांधा था। और मंत्री रस्से के सहारे उतर कर कैद से मुक्त हो गया।
कहानी कहती है कि मंत्री न केवल इस कैद से मुक्त हुआ, बल्कि उसे उस मुक्त होने के ढंग में जीवन की आखिरी कैद से भी मुक्त होने का सूत्र मिल गया।
पतला-सा धागा भी पकड़ में आ जाए तो छुटकारे में कोई बाधा नहीं है। पतले से पतला धागा भी मुक्ति का मार्ग बन सकता है। लेकिन धागा पकड़ में आ जाए! एक छोटी-सी किरण पहचान में आ जाए, तो उसी किरण के सहारे हम सूरज तक पहुंच सकते हैं।
सभी धर्म, सभी गुरु किसी पतले से धागे को पकड़ कर परमात्मा तक पहुंचे हैं। वे धागे अनेक हो सकते हैं। अनेक तरह के कीड़ों पर धागा बांधा जा सकता है। और जरूरी नहीं कि कीड़े की मूंछों पर मधु ही लगाया जाए, कुछ और भी लगाया जा सकता है। वे गौण बातें हैं। असली बात यह है कि धागा कैदी तक पहुंच जाए। धागा ही फिर सेतु बन जाता है मुक्ति तक।
भज गोविंदम मूढ़ मते।
ज्योतिष आचार्य रजनीश मिश्रा