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रूहानी रिश्ते की लाज रखो...! / सैयद सलमान
Friday, January 10, 2020 - 10:10:48 AM - By सैयद सलमान

रूहानी रिश्ते की लाज रखो...! / सैयद सलमान
सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 10 01 2020

पाकिस्तान से यूँ भी किसी अच्छी ख़बर की उम्मीद कम ही रहती है, लेकिन पिछले दिनों की एक घटना ने उसके प्रति मन में और विषाद भर दिया। वहां के अल्पसंख्यक हिंदू, ईसाई और सिखों के ख़िलाफ़ स्थानीय मुसलमानों और सरकारी दबाव की ख़बरें पढ़कर मन विचलित हो जाता है। घटना सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल ननकाना साहिब पर किये गए पथराव की है। जब इसी तरह का कोई वाक़या यहाँ मुस्लिम समाज के साथ घटित होता है और मुस्लिम समाज ख़ुद को मज़लूम बताता है, तो उस पर पाकिस्तानी होने और पाकिस्तानी मुसलमानों के अत्याचारों के बहाने व्यंग्य, ग़ुस्सा और नफ़रत को जायज़ ठहराया जाता है। सीधी सी बात है, जब मुस्लिम समाज यहाँ ख़ुद को प्रताड़ित समझता है, तो उसे पहले पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के दर्द को समझना होगा। यहाँ के मुसलमानों को खुलकर ऐसे मसलों पर अपना पक्ष रखना चाहिए। उसे कहना चाहिए कि भारतीय मुसलमानों की फ़िक्र करने से पहले पाकिस्तान वहां के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दे। यहाँ का मुसलमान अपने हमवतन भाइयों के साथ बेहद ख़ुश है।

बात करते हैं पाकिस्तान की घटना की। पाकिस्तान में एक सिख किशोरी से शादी करने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति के परिवार की अगुवाई में कुछ लोगों ने अपने रिश्तेदारों की गिरफ़्तारी का विरोध शुरू कर दिया था। लड़की का कथित बलात धर्मांतरण कराने को लेकर संबंधित व्यक्ति के रिश्तेदारों को गिरफ़्तारर किया गया था। भीड़ ने गुरुद्वारा जन्मस्थान ननकाना साहिब के बाहर प्रदर्शन किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान में सैकड़ों की भीड़ ने सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल ननकाना साहिब को घेरकर उस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। प्रदर्शनकारियों ने सिखों को भगाने और ननकाना साहिब का नाम बदलने की धमकी भी दी। हमारा स्पष्ट मानना है कि ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर हुआ हमला मानवता के आदर्शों, धार्मिक मूल्यों और इस्लाम की शिक्षा को शर्मसार करने वाली घटना है। बुद्धिजीवी मुसलमानों ने इस मुद्दे पर पाकिस्तानी कट्टरपंथियों की निंदा की है। और निंदा की भी जानी चाहिए।

यहाँ यह बात ग़ौर करने की है कि, इस्लाम और सिख धर्म का शुरू से ही एक अभिन्न संबंध रहा है। सिख धर्म का उदय अविभाजित भारत के पंजाब क्षेत्र में हुआ, जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के अनुयायी बड़ी संख्या में थे। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक के बारे में कहा गया:

बाबा नानक शाह फ़क़ीर
हिंदू दा गुरू, मुसलमान दा पीर

सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव ने जीवन भर हिंदू और मुस्लिम धर्म की एकता का संदेश दिया। यातायात के बेहद कम संसाधनों वाले उस दौर में भी उन्होंने पूरे भारत ही नहीं, आधुनिक इराक़ के बग़दाद और सऊदी अरब के मक्का-मदीना तक की यात्रा की। गुरु नानक जी का एक शिष्य मरदाना था, जो मुस्लिम था। मरदाना की ख़्वाहिश मक्का जाने की थी। मरदाना का मानना था कि, जब तक मुसलमान मक्का जाकर हज नहीं कर लेता, तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है। गुरु नानक ने यह बात सुनी तो वह उसे साथ लेकर मक्का के लिए निकल पड़े। गुरु नानक देव ने अपने शिष्य मरदाना के साथ क़रीब २८ वर्षों में दो उपमहाद्वीपों में पांच प्रमुख पैदल यात्राएं की थीं, जिन्हें उदासी कहा जाता है। उदासियाँ का अर्थ है कि गुरु नानक देव उदासीन अवस्था में यात्राओं पर निकल जाते थे। इन यात्राओं के दौरान वह अपने संदेश का प्रचार-प्रसार करते थे और उस दौर के साधु-संतों और फ़क़ीरों से मुलाक़ात करते थे। इन २८ हज़ार किलोमीटर लंबी यात्राओं में गुरु नानक ने क़रीब ६० शहरों का भ्रमण किया। अपनी चौथी उदासी में गुरु नानक ने मक्का की यात्रा की। अपने शिष्य की इच्छा को पूरी करने के लिए गुरु नानक का यह प्रयास क्या मुस्लिम समाज को भीतर से द्रवित नहीं करता? और यह कोई कपोल कल्पना नहीं है, इसके लिखित दस्तावेज़ मौजूद हैं। गुरु नानक की मक्का यात्रा का विवरण कई ग्रंथों और ऐतिहासिक किताबों में मिलता है। 'बाबा नानक शाह फ़क़ीरर' में हाजी ताजुद्दीन नक्शबंदी ने लिखा है कि, वह गुरु नानक से हज यात्रा के दौरान ईरान में मिले थे। ज़ैन-उल-आबदीन की लिखी 'तारीख़ अरब ख़्वाजा' में भी गुरु नानक की मक्का यात्रा का ज़िक्र किया गया है। हिस्ट्री ऑफ़ पंजाब, हिस्ट्री ऑफ सिख, वारभाई गुरदास और सौ साखी, जन्मसाखी में भी नानक की मक्का यात्रा का ज़िक्र मिलता है। यानि शुरू से ही मुसलमानों का भी पर्याप्त समर्थन सिख धर्म को मिलता रहा है। लेकिन बाद के समय में मुस्लिम शासकों ने इस धर्म और इसके अनुयायियों का दमन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जिसका मलाल सिख समुदाय को हमेशा रहता है। हालांकि इस से सिख भाइयों की परोपकार की भावना में कोई कमी नहीं आई है।

ग़ौरतलब है कि, सिख भाइयों से मुस्लिम समाज के हमेशा ही अच्छे संबंध रहे हैं। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए सिखों के क़त्ले आम के दौरान मुस्लिम समाज पूरी तरह सिख भाइयों के साथ खड़ा रहा। उन्हें पनाह दी। पुलवामा अटैक के बाद जब दिल्ली सहित अनेक जगहों से कश्मीरी विद्यार्थियों और व्यापारियों को अति उत्साही भीड़ परेशान कर रही थी, तब इन्हीं सिख भाइयों ने ही उन्हें गुरुद्वारों में पनाह दी थी। यह भारत की संस्कृति है। और पाकिस्तान ने क्या किया? उन्होंने अल्पसंख्यक सिखों के पवित्र स्थल पर पथराव किया। यह उनकी संस्कृति है। यह दो देशों के मुसलमानों के नज़रिए का फ़र्क़ है। यहाँ की संस्कृति में प्रेम बसता है, वहां केवल नफ़रत। यहां के वाक़यों पर पाकिस्तान का दर्द केवल दिखावा मात्र है। ननकाना साहिब पर पथराव की इसीलिए कड़ी से कड़ी निंदा की जानी चाहिए कि, यह घटना पाकिस्तानियों की गंदी ज़हनियत की अक्कासी करती है। पैग़म्बर मोहम्मद साहब की इंसानियत और इस्लाम की असल शिक्षा से पाकिस्तानियों की हरकत मेल नहीं खाती। मोहम्मद साहब अपने पड़ोसियों से, ख़्वाह वह यहूदी, ईसाई या किसी अन्य धर्म का रहा हो, बेहद मुख़लिसाना बर्ताव करते थे, उनके यहाँ तोहफ़े-तहायफ़ भेजते थे। उनसे इंसानी रिश्तों की बुनियाद पर ताल्लुक़ रखते थे। लेकिन पाकिस्तानियों ने अल्पसंख्यक पड़ोसियों के साथ नफ़रत का मुज़ाहिरा कर उनकी शिक्षा की अनदेखी की है।

दरअसल गुरु नानक की शिक्षाओं का स्वरूप सार्वभौम है, इसलिए हर धर्म, पंथ और संप्रदाय का व्यक्ति इससे जुड़ाव महसूस करता है। सिख समुदाय से मुस्लिम समाज का रिश्ता केवल सामाजिक ही नहीं, आध्यात्मिक भी है। बाबा शेख़ फ़रीद शकरगंज भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र के एक सूफ़ी-संत थे। वह एक उच्चकोटि के पंजाबी कवि भी थे। सिख गुरुओं ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया। 'परमात्मा एक है' का संकल्प गुरु नानक देव और बाबा शेख़ फ़रीद को धर्म और रूहानियत के दायरे में एक-दूसरे के नज़दीक लाता है। यही पक्ष बाबा फ़रीद के पवित्र श्लोकों को गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज करने का मुख्य कारण बना। गुरु नानक और बाबा फ़रीद को अलग-अलग तौर पर देखा ही नहीं जा सकता है, क्योंकि बाबा शेख़ फ़रीद की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र वाणी का हिस्सा बन गई है। गुरुग्रंथ साहिब में बाबा फ़रीद की वाणी के नाम से १०० से भी ज़्यादा श्लोक हैं। बाबा शेख़ फ़रीद का जन्म गुरु नानक देव जी से पाँच सौ साल पहले माना जाता है। गुरु नानक देव मुस्लिम सूफी संत बाबा शेख़ फ़रीद की शिक्षाओं से बड़े प्रभावित थे। माना जाता है कि बाबा फ़रीद को गुरु नानक देव अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। बाबा फ़रीद ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे। पाकिस्तानियों को इस रूहानी रिश्ते की लाज रखना शायद नहीं आया।
काश पाकिस्तानी महान सूफी संत गुरु नानक देव के इस संदेश का मर्म समझ पाएं;

अव्वल अल्लाह नूर उपाया,
क़ुदरत के सब बंदे...
एक नूर ते सब जग उपज्या,
कौन भले को मंदे...

अर्थात, ‘हम सब उस सर्वशक्तिमान, परम परमात्मा के अनुयायी हैं, सब इंसान भाई-भाई हैं, फिर एक ईश्वर की रचना होने के बावजूद हममें उंच-नीच कैसी।’