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सकारात्मक बदलाव के साक्षी / सैयद सलमान
Friday, November 29, 2019 - 9:38:27 AM - By सैयद सलमान

सकारात्मक बदलाव के साक्षी / सैयद सलमान
सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 29 11 2019

लंबे इंतज़ार के बाद आख़िर महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने में कामयाब हो गई। इस बीच महाराष्ट्र ने तीन दिन का मुख्यमंत्री भी देखा और उप मुख्यमंत्री भी। सुबह तड़के ली गई मुख्यमंत्री की शपथविधि भी देखी और इस्तीफ़े देते नेताओं के उतरे चेहरे भी देखे। उहापोह में फंसी कांग्रेस को भी देखा और परिवार में फूट के बावजूद उसे फिर से जोड़ने और पार्टी को एकजुट बनाए रखने वाले शरद पवार को भी देखा। महाराष्ट्र ने यह भी देखा कि किस तरह अपने स्वाभिमान के लिए शिवसेना ने आख़री सांस तक लड़ाई लड़ी और अपने मिज़ाज के ख़िलाफ़ रहने वाली पार्टियों के मुख से शिवसेना की तारीफ़ करवाई। यही नहीं वर्षों की धुर विरोधी पार्टियों के मुख से उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री पद के लिए नाम घोषित करते देखा। महाराष्ट्र के लिए यह काम महत्वपूर्ण नहीं है कि ठाकरे परिवार का चिराग़ अब अपनी रोशनी से महाराष्ट्र को नई दिशा देगा। सबसे दिलचस्प रही मुस्लिम समाज की प्रतिक्रिया। इक्का-दुक्का अपवाद को छोड़कर मुस्लिम समाज ने शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार का खुले दिल से स्वागत किया है।

काफी मेहनत-मशक़्क़त और मश्वरे के बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर न्यूनतम साझा कार्यक्रम (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम) बनाया है। महाराष्ट्र में सरकार चलाने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम का जो ड्राफ़्ट तैयार हुआ है, उसमें ४० बिंदुओं पर सहमति बनी है। ख़ास बात ये है कि इसमें तीनों पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल मुद्दों को ही तरजीह दी गई है। न्यूनतम साझा कार्यक्रम को कोई चुनावी घोषणा पत्र नहीं, बल्कि एक स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन के लिए तैयार किया गया एक्शन प्लान बताया जा रहा है जिसमें सारे विवादित मुद्दों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। सबसे बड़ी बात शिवसेना शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिम समाज को ५ फ़ीसदी आरक्षण देने पर राज़ी हो गयी है। समाजवादी पार्टी सहित अन्य पार्टियों और अनेक मुस्लिम संगठनों ने शिवसेना की इस भूमिका को दिल से सराहा है। इसी आधार पर समाजवादी पार्टी महाविकास अघाड़ी को समर्थन भी दे रही है। वैसे मुस्लिम आरक्षण को शिवसेना का समर्थन चुनाव बाद की बात नहीं है बल्कि चुनाव के पहले ही एक तरह से शिवसेना ने इसका समर्थन किया था। शिवसेना विधायक सुनील प्रभु ने विधानसभा में चर्चा के दौरान अपने बयान में कहा था कि, 'जो पिछड़े हुए घटक हैं, चाहे वो मुस्लिम क्यों न हो, उन्हें आरक्षण देना चाहिए, उनको काम मिलना चाहिए, न्याय मिलना चाहिए, शिवसेना हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली है।' यही नहीं इस बार दशहरे की रैली में शिव सैनिकों को संबोधित करते हुए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने खुद कहा था कि, 'शिवसेना सदा ही हिंदुत्व के विचारधारा पर चलती रही है और वह उसी विचारधारा को लेकर आगे भी बढ़ रही है।' साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा था कि 'हम मुसलमानों का स्वागत करते हैं और मुस्लिम आरक्षण के पक्षधर भी हैं।'

मुस्लिम समाज को शिक्षा में आरक्षण देने की ये क़वायद कांग्रेस-एनसीपी की पिछली सरकार के दौरान शुरू हुई थी, लेकिन पिछली सरकार आने के बाद ये स्कीम खटाई में पड़ गयी थी। शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार में अब मुसलमानों की आस बढ़ी है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी। शिवसेना की छवि इस मामले में विख्यात है कि एक बार अगर उसने जो बात कह दी वह पत्थर की लकीर है। शिवसेना के प्रति मुस्लिम समाज में यह विश्वास अचानक नहीं जागा है। शिवसेना ने ९० के दशक में साबिर शेख के रूप में एक कर्मठ मुस्लिम विधायक दिया था जो ९५ में बनी शिवसेना-भाजपा सरकार में मंत्री भी रहे। तीन बार साबिर शेख ने विधायक बनकर महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना का प्रतिनिधित्व किया। वह मुस्लिम समाज का चेहरा बनकर उभरे और माना जाता है कि स्वर्गीय बालासाहब ठाकरे का उनपर विशेष स्नेह था। ज्यादा पीछे न जाकर वर्तमान विधानसभा की बात करें तो इस बार भी अब्दुल सत्तार के रूप में एक मुस्लिम विधायक शिवसेना ने दिया है जो सिल्लोड़ निर्वाचन क्षेत्र से जीतकर विधानसभा में पहुंचे हैं। हालांकि अब्दुल सत्तार कांग्रेस से शिवसेना में आए हैं, लेकिन दो बातें ग़ौर करने वाली हैं। एक तो, उन पर शिवसेना ने विश्वास जताकर चुनाव में उतारा। दूसरे, सिल्लोड़ की अवाम ने शिवसेना प्रत्याशी के रूप में उन्हें नकारा नहीं, बल्कि शिवसेना के विश्वास को सही साबित कर उन्हें विजयी बनाया। इसके अलावा मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना के दो मुस्लिम नगरसेवक जीतकर पहुंचे हैं। शिवसेना ने पांच मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था जिसमें से एक अंबोली से दूसरे बांद्रा के बेहरामपाड़ा से जीते हैं। पहले मरहूम साबिर शेख और अब अब्दुल सत्तार का विधायक बनना या फिर शाहिदा खान और हाजी हलीम खान का शिवसेना का नगरसेवक बनना कोई मामूली घटना नहीं है। यह शिवसेना का राष्ट्रवादी मुसलमानों पर विश्वास और बदले में मुसलमानों का शिवसेना को भी अपना मानने की बड़ी दलील है। इसलिए इस बार जब शिवसेना की सरकार बनने की बात चली तो मुसलमानों ने भी इस कोशिश को अपना समर्थन दिया। एनसीपी के नवाब मालिक, कांग्रेस के नसीम खान और समाजवादी पार्टी के अबू आसिम आज़मी इस कोशिश में काफ़ी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते देखे गए। यह संदेश था इस बात का कि मुसलमान शिवसेना से नज़दीकी चाहता है। वह वर्षों से चली आ रही ग़लतफ़हमी को दूर करना चाहता है।

एक बात और समझने की ज़रूरत है। शिवसेना ने अगर हिंदुत्व की राजनीति की है तो यह उसका अपना अधिकार है। बात अगर हिंदुत्व की है तो कांग्रेस पर भी तो नर्म हिंदुत्व के आरोप रहे हैं। और अगर हिंदुत्व की राजनीति करते हुए मुसलमानों के विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा हो तो भला मुस्लिम समाज को क्यों आपत्ति होनी चाहिए। फ़िलहाल शिवसेना को हिंदुत्व की याद दिलाने वाली भाजपा को इस दर्जे की राजनीति नहीं करनी चाहिए थी। अपने कट्टर हिंदुत्व काल में बीजेपी ने कौन सा आरिफ़ बेग या सिकंदर बख़्त को बाहर कर दिया था? नजमा हेपतुल्लाह को किसने गले लगाया? वर्तमान में प्रचार माध्यमों में बीजेपी की वकालत करते शाहनवाज़ हुसैन और मुख़्तार अब्बास नक़वी कौन हैं? इसलिए यह बहस का मुद्दा ही नहीं होना चाहिए। शिवसेना के साथ जाने का मुसलमानों को भी पूरा हक़ है अगर शिवसेना उनकी तरफ हाथ बढ़ा रही है। भेद की राजनीति से समाज बंटता है जिसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है देश के विकास को। तरक़्क़ी थमती है, योजनाएं रूकती हैं। क्या इस से उबरने के लिए इन मुद्दों को बढ़ाने के बजाय कोई रास्ता नहीं निकालना चाहिए? ऐसे में अगर शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र को आगे ले जाने का निर्णय लिया है तो सवाल उठाने वालों की नीयत शक़ के दायरे में आएगी। यह केवल मुस्लिम समाज की बात नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र के हित का सवाल है।

इस बार की दशहरा रैली के दौरान शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा था कि 'छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में महाराष्ट्र के मुसलमान के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोग भी थे। उन्होंने अपने साथ मिलकर दिल्ली के शासकों के तख़्त हिला दिए थे।' क्या इन बयानों में मुसलमानों को लेकर एक विश्वास नज़र नहीं नजर आ रहा? क्या मुसलमानों को इसके जवाब में सकारात्मक कदम उठाने से पीछे हटना उचित होगा? मुसलमानों को यह सोचना होगा और मन से इस वहम को भी निकालना होगा कि सभी पार्टियां उनकी दुश्मन हैं। क़दम से क़दम मिलाना तो होगा वरना कहीं पीछे न छूट जाएं। अब जबकि शिवसेना के नेतृत्व में एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बन गई है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वह मुस्लिम समाज को दरकिनार नहीं करेगी और मुस्लिम समाज को भी इस सरकार के साथ पूरी ईमानदारी से खड़ा रहने की ज़रूरत है ताकि मुस्लिम समाज बड़े सकारात्मक बदलाव का साक्षी बने। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मुस्लिम समाज की ओर से मुख्यमंत्री बनाए जाने की बधाई तो बनती है।