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हुसैनी ब्राह्मण भी पूरी अक़ीदत और एहतेराम के साथ मनाते हैं मुहर्रम / सैयद सलमान
Wednesday, September 11, 2019 - 11:13:41 AM - By सैयद सलमान

हुसैनी ब्राह्मण भी पूरी अक़ीदत और एहतेराम के साथ मनाते हैं मुहर्रम / सैयद सलमान
प्रतीकात्मक तस्वीर
हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की याद में मोहर्रम का त्यौहार कल (मंगलवार) देश भर में पूरी अक़ीदत और एहतेराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर कहीं ताजिये और अलम का जुलूस निकला तो कहीं मजलिस व मातम के ज़रिये कर्बला की शहादत को याद किया गया। शिया समुदाय के लोग काले कपडे पहनकर मातम और नौहाख्वानी करते हुए अलम लेकर निकले तो दूसरी तरफ सुन्नी समुदाय के लोगों ने लंगर और शरबत का इंतज़ाम किया ताकि कोई भूखा प्यासा न रहे। गौरतलब है कि इस्लामी कैलेण्डर का नया साल होने के बावजूद कर्बला के वाक्ये की वजह से मुहर्रम पर खुशियां नहीं मनाई जातीं और लोग पूरे महीने ग़म में ही डूबे रहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पैग़म्बर मुहम्‍मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की कर्बला में हुई शहादत को याद करने के लिए न सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग, बल्कि कुछ विशेष ब्राह्मण भी मुहर्रम मनाते हैं? बहुत कम लोग ही जानते हैं कि दक्षिण एशिया, खासकर भारत में एक ऐसा हिंदू समुदाय भी रहता है जिसका इमाम हुसैन की लड़ाई से जुड़ाव रहा है। दरअसल हज़रत हुसैन से बेइंतेहा मुहब्बत करने वाले ये ब्राह्मण हुसैनी ब्राह्मण कहलाते हैं। 
मान्‍यता है कि मुहम्‍मद साहब के शासनकाल में दत्‍त ब्राह्मण के राजा राहिब सिद्ध दत्‍त हुआ करते थे। उनके कोई औलाद पर थी। वह मुहम्‍मद सा‍हब के दर पर संतान का आशीर्वाद मांगने आए, लेकिन फिर उन्‍हें पता चला कि उनके भाग्‍य में संतान सुख नहीं है। तब उनकी निराशा को दूर करने के लिए मुहम्‍मद साहब के नाती इमाम हुसैन की ज़िद पर मुहम्मद साहब ने उन्‍हें औलाद होने का आशीर्वाद दिया। जिसके फलस्‍वरूप उनके यहां 7 बेटों का जन्‍म हुआ। मान्यताओं के अनुसार जब क्रूर बादशाह यजीद ने खुद को इस्लाम धर्म का शहंशाह घोषित किया तो पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे 'हजरत इमाम हुसैन' और उनके अनुयायियों ने मानने से साफ इनकार कर दिया। बादशाह यजीद इस बात को समझ गया था कि हुसैन के जिंदा रहते वह कभी भी शहंशाह नही बन सकता है। इसी वजह से यजीद ने इमाम हुसैन को एक खत लिख जंग का एलान कर दिया। क्रूर शहंशाह बने यजीद को चुनौती देने के लिए इमाम हुसैन इराक वासियों के भरोसे मक्का से अपने परिवार के साथ इराक के लिए निकल पड़े। यजीद की फौज ने धोखे से हुसैन के समर्थकों को इराक में रोक लिया और कर्बला के मैदान में दलजा नदी के किनारे हुसैन के काफिले को भी रोक दिया।संकट आने पर लोग अपनों को जरूर याद करते हैं। ठीक उसी तरह इमाम हुसैन ने भी इस संकट की घड़ी में मदद के लिए दो खत लिखे। इमाम हुसैन का लिखा एक खत भारत भी पहुंचा। यह खत भारत में हुसैनी ब्राह्मणों के राजा राहिब सिद्धदत्त के लिए लिखा गया था। हजरत इमाम हुसैन की संकट की खबर जैसे ही राहिब दत्त को मिली, वह अपनी हुसैनी ब्राह्मण की सेना के साथ इमाम हुसैन की मदद के लिए कर्बला निकल पड़े। उनके कर्बला पहुंचने के पहले ही हुसैन शहीद हो चुके थे। इमाम हुसैन की शहीद होने की खबर से इन ब्राह्मणों का गुस्सा और बढ़ गया। हुसैनी ब्राह्मणों ने यजीद की फौज के साथ संघर्ष किया। यजीदी फौज इमाम हुसैन का सिर कलम करे उसे अपने साथ ले जा रही थी। राजा सिद्ध दत्‍त और उनकी सेना ने यजीदी फौज का पीछा करते हुए इमाम हुसैन का सिर उनसे छीन लिया और दमिश्‍क की ओर बढ़ गया।
रात के वक्‍त रास्‍ते में पड़े एक पड़ाव पर राजा सिद्ध दत्‍त की सेना को यजीदी फौज ने चारों ओर से घेर लिया और इमाम के सिर को वापस मांगने लगे। सिद्ध ने इमाम का सिर नहीं सौंपा और बल्कि उसकी जगह एक-एक करके अपने सातों बेटे के सिर काटकर दे दिए। यजीदी फौज ने फिर भी हुसैन का सिर मानने से इंकार कर दिया। दत्‍त के दिल में इमाम की मौत का बदला लेने की आग भड़क रही थी। दत्‍त और उनके सैनिकों ने चुनचुनकर हुसैन के कातिलों से बदला लिया। हुसैन की मौत और अपने बेटों की शहादत के लिए दत्‍त ब्राह्मण ने दर्जनों दोहे पढ़े। जो मुहर्रम में उनके वंशजों के घर में पढ़े जाते हैं। तब से दत्‍त ब्राह्मण हुसैनी ब्राह्मण कहलाने लगे।

हुसैनी ब्राह्मणों का कुछ इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा है। कौरवों और पांडवों के गुरू द्रोणाचार्य दरअसल, दत्त ब्राह्मण थे। महाभारत के युद्ध के समय उनका बेटा अश्वत्थामा घायल होकर भूमि पर गिर पड़ा और उसे लोगों ने मरा हुआ समझ लिया। अश्वत्थामा तब शरण लेते हुए ईराक पहुंच गए और वहीं बस गए। महाभारत काल के बचे हुए 17 योद्धाओं में से अश्वत्थामा भी एक थे। दत्त या मोहियाल ब्राह्मणों के इतिहास में लिखा है कि ये पुराने जमाने में ब्राह्मण दान लेकर अपनी आजीविका चलाते थे। इस दौरान कुछ लोगों को ये अच्छा नहीं लगा तो वो सैनिक बन गए। इन्‍होंने अरब, मध्‍य एशिया और इराक में अपना साम्राज्‍य स्‍थापित किया। इन्हीं को मोहियाल कहा गया। मोहि यानी जमीन और आल यानी मालिक। ये लोग योद्धा थे और अपनी जमीन के मालिक। हुसैनी ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के वो लोग हैं जो हिंदू और मुसलमान दोनों से संबंध रखते हैं।
वर्तमान समय में यह हुसैनी ब्राह्मण सिंध, पाकिस्तान और अरब के अलावा पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं। हिस्ट्री ऑफ मुहियाल्स नाम की किताब के मुताबिक, कर्बला के युद्ध के समय 1400 ब्राह्मण उस समय बगदाद में रहते थे।
इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर कर्बला एक शहर है। मक्का-मदीना के बाद कर्बला इस्लाम धर्म के लोगों के लिए एक प्रमुख स्थान है। मक्का-मदीना के बाद कर्बला इस्लाम धर्म के लोगों के लिए एक प्रमुख स्थान है। सदियों बाद आज भी हुसैनी ब्राह्मण हर साल हिंदू धर्म के सभी पर्व के साथ मुहर्रम भी मनाते हैं। जिस जगह पर राहिब दत्त ने अपनी सेना के साथ पड़ाव डाला था, उसे वर्तमान में इराक के हिंदिया ज़िले के नाम से जाना जाता है। आज ज़रूरत इतिहास के ऐसे पन्नों को पलटने की है जिस से समाज में सद्भाव संदेश जाए।