साभार- दोपहर का सामना 23 08 2019
केंद्र सरकार द्वारा तीन तलाक़ पर सख़्त क़ानून बनने के बाद भी मुस्लिम महिलाओं के साथ अभी भी तीन तलाक़ के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसा लगता है कि मुस्लिम समाज के कुछ पुरुषों में इस क़ानून का ज़रा सा भी डर नहीं है। क़ानून बने हुए लगभग एक महीना होने को है लेकिन नए क़ानून को धता बताते हुए इस बीच एक साथ तीन तलाक़ देने के कई मामले सामने आए हैं। ट्रिपल तलाक़ के इन मामलों में देश की राजधानी दिल्ली, आर्थिक राजधानी मुंबई, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के गृहप्रदेश का अहमदाबाद, विश्वविख्यात धर्मस्थली बनारस, मोहब्बत की अलामत ताजमहल का शहर आगरा और देश के अनेक छोटे-बड़े क़स्बे, मोहल्ले और गांव शामिल हैं। हालांकि मुस्लिम महिलओं को तीन तलाक़ जैसी प्रथा से बचाने के लिए लाए गए क़ानून को प्रशासन ने अमल में लाना शुरू कर दिया है। तक़रीबन हर नए मामले में गिरफ़्तारी हो रही है। इस क़ानून के तहत यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से एक साथ तीन तलाक़ देता है तो उसकी ऐसी कोई भी उद्घोषणा शून्य और अवैध होगी। मुस्लिम महिला 'विवाह अधिकार संरक्षण' अधिनियम २०१९ यानि ट्रिपल तलाक़ क़ानून को संज्ञेय और दंडात्मक अपराध घोषित किया गया है।
क़ानून बनने के बाद भी एक साथ तीन तलाक़ देने का सिलसिला न थमना मुस्लिम समाज को कटघरे में खड़ा करता है। राजधानी दिल्ली में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को वित्तीय स्थिति के ख़राब होने के कारण तलाक़ दे दिया। पुलिस के अनुसार, २९ वर्षीय रायमा याहया ने एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उसने दावा किया कि उसके पति अतीर शमीन ने तीन बार 'तलाक़' बोलकर उसे तलाक़ दे दिया। साथ ही वाट्सएप पर भी उसे यही संदेश भेजा। इसी तरह उड़ीसा में भी दहेज के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने वाले अबू सुफ़ियान ने अपनी पत्नी को फ़ोन पर ही तीन तलाक़ दे दिया। जबकि कुछ दिन पहले ही महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया था। उत्तरप्रदेश के उन्नाव में पति ने पत्नी को बाज़ार में देख सिर्फ़ इस बात पर तीन तलाक़ बोल दिया कि वह पति के मर्ज़ी के विरुद्ध बाजार गई हुई थी। ऐसा ही एक मामला ग़ाज़ियाबाद का है जहां एक पति ने अपनी पत्नी को सिर्फ़ इसलिए तीन तलाक़ बोल दिया कि उसकी पत्नी बेटी को जन्म देने के बाद मायके से अपने पति की कार देने की ज़िद पूरी नहीं कर रही थी। आरोप है कि तलाक़ देते समय पति इमरान ने अपनी पत्नी के परिजनों की मौजूदगी में उसे पीटा भी था। तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बनने के दो हफ़्तों बाद मुंबई की नागपाड़ा पुलिस ने भी शहर का पहला मामला मुस्लिम महिला अधिनियम २०१९ के तहत दर्ज किया। इस जोड़े का निकाह २००५ में हुआ था। इस मामले में भी लड़का कम पढ़ा-लिखा है और बेरोज़गार है। वो अच्छे घर से ताल्लुक़ रखने वाली अपनी पत्नी से ही पैसे मांगता रहता था और न देने पर उसने तलाक़ का रास्ता चुन लिया। ऐसा ही एक मामला यूपी के जनपद हापुड़ का है जहां बीमार बच्चे के लिए पत्नी रुख़सार द्वारा दवा के लिए महज़ ३० रुपये मांगने पर पति सुल्तान ने ईद-उल-अज़हा से १ दिन पहले ही तीन तलाक़ देकर घर से निकाल दिया। यही नहीं पीड़िता का आरोप है कि उसके पति ने उसके दो मासूम बच्चों को भी उससे छीन लिया है। आगरा में तो न्यायालय में तारीख़ पर आई बीवी को उसके पति ने दीवानी परिसर के गेट पर ही तीन तलाक़ दे दिया। आफ़ाक़ नाम के शख़्स ने पहले बीवी नग़मा को तलाक़ दिया फिर ससुर को जान से मारने की धमकी देकर चलता बना। न्यायालय में आफ़ाक़ पर पत्नी से मारपीट का मामला चल रहा था जिसकी सुनवाई पर न्यायालय में दोनों पक्ष आए थे। आगरा का ही दूसरा मामला लोहामंडी का है जहाँ के निवासी ज़मीरउद्दीन उर्फ छोटू ने प्रेम विवाह के छह महीने बाद ही बीवी फ़रहीन को तीन तलाक़ देकर घर से निकाल दिया। बनारस में भी ऐसा ही एक पारिवारिक मामला सामने आया जब दहेज उत्पीड़न की शिकायत किए जाने पर बड़ागांव थानाध्यक्ष ने दोनों परिवार में सुलह करने की कोशिश की। पत्नी शबाना और उसके पति मक़सूद को थाने पर बुलाकर पंचायत कराई गई। लेकिन पंचायत से उठकर मक़सूद थाने के बाहर आया और उसे तीन बार तलाक़ कहकर अपने घर चला गया। इसी प्रकार अहमदाबाद के तीन दरवाज़ा इलाके में एक महिला को उसके पति महबूब ने सिर्फ़ इसलिए तीन तलाक़ दे दिया क्योंकि महिला ने फ़्लैट की किश्त भरने के लिए २० हज़ार रुपये नहीं दिए। आरोपी पति लगातार महिला को प्रताड़ित करके उसके मायके से पैसे लाने के लिए कह रहा था। बिडम्बना यह कि यह मामला उसी दिन का है जिस दिन राज्यसभा से ट्रिपल तलाक़ बिल पास हुआ था।
यह कुछ उदहारण हैं। तलाक़ के कारण भी कई मामलों में बेहद बचकाने और जाहिलाना हैं। यह इस बात का इशारा करते हैं कि मुस्लिम समाज में शिक्षा का अभाव है और उन्हें देश के क़ानून का इल्म ही नहीं है। यह जागरूकता का अभाव ही है कि जब ट्रिपल तलाक़ देश भर में इन दिनों सबसे ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है तब मुस्लिम समाज उसकी गंभीरता से अनजान है। क़ानून बन जाने के बाद सज़ा के प्रावधान का तो भय होना चाहिए था, लेकिन वह भी नहीं है। ऐसे लोगों से कैसे अपेक्षा की जाए कि वे क़ुरआन और हदीस का मुतालआ करते होंगे। क़ुरआन की कितनी समझ ऐसे लोगों में होगी इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है। क़ुरआन में स्पष्ट रूप से तीन तलाक़ का कोई उल्लेख नहीं है लेकिन यह प्रथा बना दी गई थी। क़ानून बनने से पहले देश के प्रमुख उलेमा, मुफ़्ती और बुद्धिजीवियों ने भी इसे स्वीकार किया था और लोगों को एक साथ तीन तलाक़ से बचने की नसीहत की थी। लेकिन मुस्लिम समाज के आम तबके तक इसके गंभीर परिणामों का भय या जागरूकता फैलाने में सभी नाकाम रहे। ऊपर के चंद उदहारण इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि या तो मुस्लिम समाज का एक जाहिल तबक़ा इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेता या उसे इसका भय नहीं है या फिर इस क़ानून से उन्हें सही तरह से अवगत नहीं कराया गया। क़ुसूर हर हाल में मुस्लिम समाज के रहनुमाओं का है जो अपनी अवाम को इस मुद्दे पर जागरूक नहीं कर सके। स्थानीय मस्जिद, मदरसों के पेश इमाम और ज़िम्मेदारान को इस विषय में जागरूकता मुहिम चलाने की ज़रूरत है। दीन और दुनिया की तमाम जानकारियों के लिए मुसलमानों के दर-दर जाकर उन्हें शिक्षित करने की ज़रुरत है। क़ानून जब बन गया है तो मामले दर्ज होंगे ही, सजा होगी ही, यह साधारण सी बात मुस्लिम समाज के भटके हुए लोग क्यों नहीं समझ पा रहे यह बात समझ से परे है।