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झुकता पाकिस्तान- मजबूर इमरान, जबरन धर्म परिवर्तन और आतंकवाद से ब्लैक लिस्ट होने का ख़ौफ़
Friday, August 16, 2019 - 10:34:32 AM - By सैयद सलमान

झुकता पाकिस्तान- मजबूर इमरान, जबरन धर्म परिवर्तन और आतंकवाद  से ब्लैक लिस्ट होने का ख़ौफ़
सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना 16 08 2019

अनुच्छेद ३७० ख़त्म करने की ख़बर ने देश-विदेश की कई ख़बरों को नेपथ्य में कर दिया। धारा ३७० और ३५-ए की समाप्ति के बाद पाकिस्तान में भारत के ख़िलाफ़ जमकर ज़हर उगला गया। कश्मीर पर अपना हक़ जताने वाले पाकिस्तान की कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। हर तरफ़ से उसकी फ़जीहत हो चुकी है। हालाँकि इस अंतरराष्ट्रीय ख़बर के अलावा पाकिस्तान को लेकर पिछले माह की कुछ और ख़बरें बहुत महत्वपूर्ण रहीं। क्रिकेटर से सियासतदां बने इमरान खान के नेतृत्व में कहा जा रहा था कि यह इमरान का नया पाकिस्तान है। इमरान से पहले भी सीमा पार से अक्सर जबरन धर्मपरिवर्तन की ख़बरें आती रही हैं। पाकिस्तान ने हमेशा इस बात से इनकार किया है। लेकिन हाल ही में इमरान खान ने इस बात को स्वीकार किया कि पाकिस्तान में ऐसा होता रहा है। इमरान ने इस बात की मुख़ालिफ़त भी की। इमरान ने अपनी बात में वज़न लाने के लिए पैग़ंबर मोहम्मद साहब का हवाला भी दिया। इमरान ने जबरन धर्म परिवर्तन को न सिर्फ़ ग़ैर-इस्लामिक बताया बल्कि यह भी कहा कि इस्लामी इतिहास में दूसरों के जबरन धर्म परिवर्तन की कोई मिसाल नहीं है। इमरान ने पाकिस्तानी मुसलमानों से कहा कि पैग़ंबर मोहम्मद साहब ने अपनी नबूवत के दौरान ख़ुद भी अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी थी और उनके उपासना स्थलों को सुरक्षा प्रदान की थी, तो हम किसी का जबरन धर्म परिवर्तन कैसे करा सकते हैं। इमरान की इस स्वीकारोक्ति के कई मायने हैं। इमरान का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अप्रैल में ही पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में हिंदू और ईसाई लड़कियों के जबरन धर्मांतरण और शादी पर चिंता जताई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि दक्षिणी सिंध प्रांत में पिछले साल ऐसे लगभग एक हज़ार मामले सामने आए थे।

इस स्वीकारोक्ति को अगर उनकी राजनैतिक छवि को उजली करने की कोशिश समझा जाए तो भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि, इमरान ने कहा तो सच है। इस्लाम में जबरन धर्मपरिवर्तन को सरासर मना फ़रमाया गया है। क़ुरआन कहता है, 'लकुम दीन'कुम वलियदीन' (तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन, मेरे लिए मेरा दीन) -(अल-क़ुरआन १०९:०६) और 'ला इकराहा फ़िद्दीन' (दीन में किसी तरह की ज़बरदस्ती नहीं)- (अल-क़ुरआन ०२:२५६) ऐसे में कोई इस्लाम के नाम पर अगर ज़बरदस्ती करे तो क्या उसे इस्लाम का मानने वाला या सच्चा मुसलमान कहा जा सकता है? क़ुरआन की शिक्षा के ख़िलाफ़ जाना किसी भी हाल में सही कैसे कहा जा सकता है? लेकिन कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों की समझ में यह बात नहीं आती। इस्लाम के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का यह कहना यूँ ही हलके में नहीं लिया जाना चाहिए। पाकिस्तान की निर्भरता काफ़ी कुछ खाड़ी देशों पर निर्भर है। ऐसे में अगर इमरान को डर होता कि वे खाड़ी देशों की सहानुभूति खो सकते हैं तो ऐसा कभी न कहते। लेकिन सच क़ुबूल कर इमरान ने इस्लाम के नाम पर जबरन धर्मपरिवर्तन की कोशिशों में लगे संगठनों को बेनकाब कर दिया है। यह इस बात की तरफ़ भी इशारा करता है कि पाकिस्तान ने जबरन धर्मपरिवर्तन को अब तक मौन सहमति दे रखी थी। इस्लाम की इस बात को मन मार कर ही सही, इमरान ने सही तरीके से पेश किया है कि चाहे ग़ैर मुस्लिम लड़कियों से शादी बंदूक की नोक पर कराना हो या फिर किसी भी हिंदू, सिख, ईसाई या यहूदी का जबरन धर्म परिवर्तन कराना हो यह सब ग़ैरर-इस्लामिक हरकतें हैं। पैग़ंबर मोहम्मद साहब के उद्धरणों को याद करते हुए सच्चा मुसलमान बनकर सोचिए कि अगर अल्लाह ने अपने पैग़ंबरों को अपना विश्वास किसी पर थोपने की इजाज़त नहीं दी, तो फिर साधारण मुसलमान ऐसा सोच भी कैसे सकता है।

इस से पहले इमरान आतंकवाद पर भी बोल चुके हैं। इमरान खान ने अपने देश की धरती पर लंबे समय से आतंकी शिविरों के मौजूद होने की बात क़ुबूल की है। आतंकवाद के मसले पर दशको से झूठ बोलते आ रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने आख़िरकार ये क़ुबूल किया है कि उसकी सरज़मीं पर आतंकी पल रहे हैं । इमरान खान ने ख़ुद इस बात को क़ुबूल किया है इसलिए इस बात की अहमियत है। उन्होंने पाकिस्तानी धरती पर लगभग ४० आतंकी समूह होने की बात स्वीकार की है। ग़ौरतलब है कि भारत लगातार ये कहता रहा है कि पाकिस्तान की धरती पर आतंकी शिविर लंबे समय से चल रहे हैं और वहां से भारत के ख़िलाफ़ आतंकवादी गतिविधियां चल रही हैं। भारत ने पाकिस्तान को हमेशा सबूत दिए लेकिन उसने आतंकी शिविरों की बात क़ुबूल नहीं की। इस तरह के क़ुबूलनामे के पीछे अंतरराष्ट्रीय दबाव के बड़े मायने हैं। दरअसल दुनिया में आतंकवाद का पर्याय बन चुका पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संगठन 'एफएटीएफ़' यानि 'फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स' के बैन को लेकर डरा हुआ है। अक्टूबर में एफएटीएफ़ की बैठक होनी है जिसमें पाकिस्तान को 'ग्रे लिस्ट' से 'ब्लैक लिस्ट' में डालने का फ़ैसला होना है। मार्च में पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया था और उसे आतंकी मदद रोकने के लिए एफएटीएफ़ की ओर से २७ टारगेट दिए गए थे। पाकिस्तान ने अभी तक उसे पूरा नहीं किया है। जून में हुई बैठक में पाकिस्तान की ओर से उठाए गए क़दमों को नाकाफ़ी बताया गया। जिससे पाकिस्तान पर अक्टूबर में ब्लैकलिस्ट होने का ख़तरा बढ़ गया है। अगर एफएटीएफ़ ब्लैकलिस्ट कर देता है तो अंतरराष्ट्रीय मदद बड़े पैमाने पर पाकिस्तान को मिलनी बंद हो जाएगी। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान पर इससे दिवालिया होने का ख़तरा बढ़ जाएगा। आतंकियों को मदद रोकने और जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ़ होने का भरोसा देकर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय का, ख़ासकर अमेरिका का विश्वास जीतना चाहता है जिस से उसे एफएटीएफ़ मामले में राहत मिल सके।

आतंकवाद पर भारत के अभियान से दुनिया में पाकिस्तान कूटनीतिक रूप से भी अलग-थलग होता जा रहा है। अमेरिकी कह चुका है कि उसने पाकिस्तान को बहुत ज़्यादा आर्थिक मदद दी लेकिन बदले में झूठ और छल के सिवाय उसे कुछ नहीं मिला। ऐसे में देखना ये होगा कि क्या आने वाले दिनों में आतंक के खिलाफ कार्रवाई पर पाक की ओर से कुछ ठोस क़दम उठाए जाते हैं या नहीं। जबरन धर्मपरिवर्तन के मामले में क्या कोरी बयानबाज़ी होती है या कुछ ठोस क़ानून भी बनाए जाते हैं। पाकिस्तान की हरकतें विश्वासयोग्य नहीं हैं और न ही इस्लाम के नज़रिए से उचित, लेकिन फिर भी वह कश्मीर, ट्रिपल तलाक़ या अन्य मुस्लिम मुद्दों पर यहाँ के मुसलमानों को बरग़लाने का लगातार प्रयास करता रहा है। भारतीय मुसलमानों को चाहिए कि मुस्लिम समाज से जुड़े या कश्मीर सहित अन्य तमाम मुद्दों पर वह पाकिस्तान के नज़रिए से देखना बंद करे और सही इस्लाम की रौशनी में फ़ैसले ले। यक़ीन मानें वह फ़ैसला, मुस्लिम हित के साथ-साथ देश हित में भी होगा।