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आइसिस का नाश ज़रूरी / सैयद सलमान
Friday, November 2, 2018 - 10:06:42 AM - By सैयद सलमान

आइसिस का नाश ज़रूरी / सैयद सलमान
सैयद सलमान
साभार- दोपहर का सामना ०२ ११ २०१८

पिछले दिनों रॉयल स्वीडिश एकेडमी ने साल २०१८ में शांति प्रयासों के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी है। इस साल का शांति का नोबेल पुरस्कार डेनिस मुकवेगे और नादिया मुराद को दिया जाएगा। दोनों को नोबेल का शांति पुरस्‍कार उनकी उन कोशिशों के लिए दिया जा रहा है, जिसमें उन्‍होंने युद्ध के हथियार के तौर पर महिलाओं के यौन उत्‍पीड़न को ख़त्म करने की कोशिशें की थी। नादिया मुराद के नाम की घोषणा होते ही दुनिया के सामने ख़तरनाक आतंकी संगठन आईएसआईएस का वह चेहरा एक बार फिर सामने आया जिसके बारे में यही मान्यता है कि यह मूल रूप से इस्लाम का प्रतिनिधित्व करता है। नादिया मुराद इराक़ के अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय से ताल्लुक़ रखती हैं। नादिया आईएसआईएस द्वारा काफी समय तक बंधक बनाकर रखी गई थीं और इस दौरान उनके साथ कई बार बलात्कार और अन्य तरीक़ों से शोषण किया गया। नादिया ने ही दुनिया को बताया कि कैसे आईएसआईएस के आतंकी लड़कियों को सेक्‍स ग़ुलाम बनाकर अपने मंसूबे पूरे करते हैं। दिसंबर २०१५ में नादिया यूनाइटेड नेशंस की सिक्‍योरिटी काउंसिल के सामने पेश हुई थीं। नादिया ने यूएन में आए तमाम देशों के प्रतिनिधियों के सामने उन पर हुए ज़ुल्मों के बारे में खुलकर बताया था।

नदिया ने आईएसआईएस की जो कहानी बताई थी वह इंसानियत को शर्मसार करने वाली है। नदिया के अनुसार नदिया और अन्य लड़कियों को अगस्त, २०१४ में अगवा कर मोसुल स्थित इस्लामिक कोर्ट में ले जाया गया था जहाँ हर महिला की तस्वीर ली जाती थी। महिलाओं की ली गई हज़ारों तस्वीरों के साथ एक फ़ोन नंबर होता था। ये फ़ोन नंबर उस आतंकी लड़ाके का होता था जो उस लड़की के लिए ज़िम्मेदार होता था। तमाम जगह से आईएसआईएस लड़ाके इस्लामिक कोर्ट आते और तस्वीरों को देखकर अपने लिए लड़कियां चुनते। यह एक तरह से लड़कियों की तस्वीरों की प्रदर्शनी हुई जहाँ किसी लड़की को पसंद करने वाला लड़ाका लड़की का मोलभाव करता। यह मोलभाव उस से होता जो उस लड़की को लेकर आया था। गोया लड़की नहीं किसी वस्तु का सौदा किया जा रहा हो। ख़रीदने के बाद फिर लड़की का नया मालिक चाहे उस लड़की को किराए पर दे या अपने किसी परिजन या परिचित को तोहफ़े में दे दे। नादिया ने यूएन के सामने बताया था कि आईएसआईएस के आतंकी बेहोश होने तक उनके साथ बलात्‍कार करते थे। आईएसआईएस ने नादिया और लगभग १५० दूसरी अन्य लड़कियों को भी अग़वा किया था। आतंकियों ने करीब तीन माह तक उन सभी को अपना सेक्‍स स्‍लेव बनाकर रखा था। यहाँ यह भी बताते चलें कि आईएसआईएस ने नादिया मुराद के साथ ही उनकी बहन का भी अपहरण किया था। दोनों का अपहरण उत्तरी इराक़ के सिंजार इलाके में स्थित उनके गांव से ही किया गया था। इस दौरान नादिया के ६ भाईयों और उनकी मां को खूंखार जिहादी आतंकियों ने मार डाला था। इसके बाद दोनों बहनों के साथ आतंकियों द्वारा कई बार बलात्कार किया गया।

वह नादिया ही थीं जिनके जरिए पता चला कि आतंकी सभी लड़कियों को आपस में किसी सामान की तरह बदलते थे। आतंकियों से डरकर क़ैद की गई कई लड़कियों ने छत से कूदकर जान तक दे दी थी। एक दिन मौक़ा पाकर नदिया किसी तरह क़ैदख़ाने से भाग निकलीं और मोसुल के शरणार्थी कैंप में पहुंचीं। हालांकि यह आतंकियों का ख़ौफ़ ही है कि नादिया अपने भागने की घटना को विस्तार से जानबूझकर नहीं बतातीं क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि ऐसा करने से बाकी लड़कियों पर ख़तरा बढ़ सकता है। नादिया ने दुनिया के सभी देशों से अपील की थी कि वे आईएसआईएस का ख़ात्मा करने के लिए आगे आएं। उस आईएसआईएस का जिसने विश्वभर में अपने संगठन को इस्लाम का सच्चा प्रतिनिधि बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, जबकि उनकी हरकतें सरासर ग़ैरइस्लामी हैं। आईएसआईएस के ज़ुल्म की कहानी काफ़ी लंबी है। किसी का अग़वा करना, उसके परिवार का क़त्ल कर देना और अग़वा की गई महिलाओं के साथ बलात्कार करना आख़िर धर्म के दायरे में कैसे आता है? यह केवल ज़ुल्म है। और इतना तो तय है कि कोई ज़ालिम मुसलमान कहलाने लायक़ हो ही नहीं सकता।

वैसे इन ज़ुल्म-ओ-सितम की रूदाद सुनाते हुए नादिया अपने भागने के दौरान अपनी मदद करने वाले एक मुस्लिम परिवार को याद करना नहीं भूलीं। नादिया जब मोसुल की गलियों में भाग रही थीं तब उन्होंने एक मुस्लिम परिवार का दरवाज़ा खटखटाया और उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने नादिया को कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुँचाने में और सुरक्षित निकलने में उनकी मदद की। उस गुमनाम मुस्लिम परिवार ने आईएसआईएस के ख़िलाफ़ जाकर एक मज़लूम की मदद कर यह साबित कर दिया कि इस्लाम में हमदर्दी का कितना महत्व है। अपनी जान पर खेलकर मज़लूम की हिफ़ाज़त करना इस्लाम की सही शिक्षा को दर्शाता है। नेकी की राह पर चलते हुए हर पीड़ित व मज़लूम की मदद करना ही इस्लाम का संदेश है, जिसका अनुसरण हर मुसलमान को करना चाहिए। ज़ुल्म का साथ देना या चुप्पी साध लेना ज़ालिम का सहायक होने के समान है। आईएसआईएस सहित वह सारे लोग जो अपने क़त्ल-ओ-ग़ारत और दहशतगर्दी के कामों को इस्लाम के आदेशानुसार बतलातें हैं, वो दरअसल पवित्र क़ुरआन और रसूल की तालीमों का अपमान करते हैं। क्योंकि क़ुरआन वो ग्रंथ है जिसने एक क़त्ल के अपराध को पूरी इंसानियत के क़त्ल करने के अपराध के बराबर रखा और कहा, “जिसने किसी बेगुनाह का क़त्ल किया या ज़मीन पर फ़साद फैलाया तो गोया उसने पूरी इंसानियत का क़त्ल किया और जिसने एक जान को बचा लिया तो गोया उसने इंसानियत को बचा लिया” – (अल-क़ुरआन- ५:३२)। क़ुरआन की एक अन्य आयत में कहा गया है कि, “किसी जान को क़त्ल न करो जिसके क़त्ल को अल्लाह ने हराम किया है।” – (अल-क़ुरआन- १७:३३)। अर्थात मज़लूम की मदद करना सबसे बड़ी इबादत है। हदीसों में आया है कि, 'ऐ मुसलमानों, ज़ुल्म ना करना और ख़ास कर उस व्यक्ति पर कभी अत्याचार मत करना जिसका कोई मददगार न हो क्योंकि जिसका कोई मददगार नहीं होता अल्लाह उसका मददगार होता है।'

लेकिन इस्लाम के नाम पर क़त्ल-ओ-ग़ारत करने वाले समूह के ख़िलाफ़ मुस्लिम मुमालिक की चुप्पी खलती है। यह चुप्पी एक तरह से आईएसआईएस के प्रति अपरोक्ष समर्थन है। आज दुनिया के अनेक मुस्लिम शासकों के सामने बेगुनाहों की गर्दनें काटी जा रही हैं, कमज़ोरों पर ज़ुल्म किया जा रहा है, बेगुनाहों का क़त्ल किया जा रहा है, कलेजे चाक किए जा रहे हैं मगर सब मुसलमान शासक तमाशाई बने हुए हैं। इस्लाम की मान्यता के अनुसार क़ुरआन जिस जगह नाज़िल हुआ था पहले वहां के इंसानों की नज़र में इंसानी जान की कोई क़ीमत न थी। बात-बात पर वो एक दूसरे का ख़ून बहा देते थे, लूटमार करते थे। क़ुरआन के अवतरण ने न केवल इस क़त्ल-ओ-ग़ारत को नाजायज़ बताया बल्कि क़ातिलों के लिये सज़ा का प्रावधान भी तय किया। वो आतंकवादी जो क़ुरआन के मानने वाले होने की बात करते हैं, उन्हें ये ज़रुर पता होना चाहिए कि इस्लाम ने ये सख़्त ताक़ीद की है कि अल्लाह की बनाई इस धरती पर कोई फ़साद न फैलाये। लेकिन आईएसआईएस ने विश्वभर में फ़साद फैला रखा है। उनकी कुटिल दृष्टि से भारत भी नहीं बचा है। कश्मीर सहित अनेक राज्यों से कई युवा आईएसआईएस में शामिल होकर मुस्लिम समाज को कलंकित कर चुके हैं। सोचने का मक़ाम है कि क्या आईएसआईएस क़ुरआन और हदीस के किसी भी पैमाने पर खरा उतरता है? अगर सही इस्लाम के वक़ार और नसीहतों को क़ायम रखना है तो आईएसआईएस का समूल नाश ज़रूरी है। पैग़ंबर मोहम्मद साहब का फ़रमान है कि, कोई भी व्यक्ति अगर मदद के लिए पुकारे और मुसलमान मदद न करे तो वह मुसलमान नहीं हो सकता। और यहाँ तो न जाने कितनी मासूम आहें-कराहें विश्वभर से आईएसआईएस के ख़िलाफ़ मदद की गुहार लगा रही हैं।