यह धर्म, यह जाति, यह भाषा
हमें बाँट नही सकते
हमें बाँट नहीं सकती
और कोई भी दीवार
तुम्हारा नमाज़ पढ़ना,
मेरा मंदिर जाना,
हमें बाँट नहीं सकता
हम एक ही तो हैं.....
तुम्हारा नक़ाब पहनना
मेरा माथे पर तिलक लगाना
तुम्हारा किसी बात पर डरकर
या अल्लाह कहना,
या मेरा भयभीत होकर
भगवान को पुकारना
सत्यमार्ग पर चलना ही तो है
तुम्हारा रोज़ा रखना
मेरा उपवास पालना
तुम्हारा ईद मनाना
मेरा दिवाली पर पटाखे जलाना
एक सी भावना ही तो है
तुम्हारा मेरे साथ मंदिर आना
मेरा तुम्हारे साथ दरगाह जाना
अल्लाह और ईश्वर का भेद मिटाना
नामुमकिन को मुमकिन करना
एक ईश्वर की उपासना ही तो है
तुम उत्तर हो
मैं दक्षिण हूं
तुम पूरब हो
मैं पश्चिम हूं
पर मुझे इन बातों से फर्क नहीं पड़ता
मन में प्रभु कि साधना ही तो है
ऐसा सब कुछ यूँ ही नहीं है
इस होने में तुम्हारे प्रेम का भाव ही तो है
तभी तो मैं वक़्त की आँखों में
झाँक सकता हूँ बेखौफ होकर
क्योंकि मैं सिर्फ तुमसे प्यार करता हूं
हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ.......
(नवोदित पत्रकार निखिल हरपुड़े ने मुंबई विश्वविद्यालय के गरवारे संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया है। शौकिया कविताएँ लिखते हैं। )