शर्त ये है कि.... / डॉ.वागीश सारस्वत
शर्त ये है कि तुम मुस्कराती रहो
मैं लिखूँ गीत तुम गुनगुनाती रहो ।।
दिन बहारों के फिर लौट कर आएंगे
प्रेम गंगा में गोते लगाती रहो ।।
आँख को आँसुओं की जरूरत नहीं
मोतियों सा इन्हें तुम सजाती रहो ।।
बात ही बात में बात बन जायेगी
तुम परी बन के ख्वाबों में आती रहो।।
साज बन जाऊँ मैं और संगीत तुम
मैं लिखूँ शब्द तुम धुन बनाती रहो ।।